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श्रमणों के संस्मरण
४७६ चिन्ता में निमग्न हो गये। उस गाँव में एक चौगुले नामक चतुर गृहस्थ थे। उन्होंने आदिसागरजी से चर्चा कर सब बातें समझ ली।
श्री चौगुले ने भद्र परिणामी आदिसागरजी को समझाते हुए कहा कि शास्त्रों में तो यही लिखा है कि मुनिपद को धारण करके स्वर्ग जावेंगे, किंतु यह भी लिखा है कि यदि कोई मुनि पदवी धारण कर उसे छोड़गा, तो वह व्यक्ति नरक जायगा। आगम के अनुसार मुनिपद धारण करने वाला स्वर्ग जायगा, शास्त्र की परवाह न कर स्वच्छन्द प्रवृत्ति करने वाला मुनि नरक जायगा। इस बात को सुनकर उन भोले-भाले आदिसागरजी का भ्रम दूर हुआ और उन्होंने पुनः मुनिचर्या का पालना प्रारम्भ कर दिया। मांगूरग्राम में उनका स्वर्गवास हुआ था। उन्हें लम्बे समय तक समाधिमरण का उद्योग नहीं करना पड़ा था। एक उपवासपूर्वक उनका मरण हुआ था। धर्म के विषय में सर्तकता __वर्धमान महाराज ने उपदेश देते हुए एक दिन कहा था-"आत्मा शैव नहीं है, बौद्ध नहीं है, यवन नहीं है, बाल नहीं है, वृद्ध नहीं है। आत्मा स्वयंभू है। आत्मा का कल्याण धर्म के द्वारा होता है। खरे-खोटे धर्म की परीक्षा करनी चाहिए। तुम बाजार जाते हो तो अल्प मूल्य वाले मिट्टी के बर्तन आदि को खरीदते समय बजाकर उसे देखते हो कि कहीं यह फूटा तो नहीं है। नारियल को लेते समय भी उसे बजाकर देखते हो, तब फिर जिस धर्म के द्वारा आत्मा का भविष्य उज्वल बनता है, उसके सम्बन्ध में परीक्षा की दृष्टि नहीं रखना यह चतुर व्यक्ति का कर्तव्य नहीं है ?" किसान का उदाहरण
महाराज ने एक सुन्दर बात कही थी कि एक बार एक किसान अपनी स्त्री से कह रहा था कि जब अपना छोटा-सा परिवार है, थोड़ी-सी खेती है, उसकी ही बहुत आकुलता रहती है, तब बड़े भारी राज्य के स्वामी महाराज भरत को कितनी चिन्ता रहती होगी? चक्रवर्ती को नींद भी दुर्लभ होगी। भरतेश्वर ने अपने अवधिज्ञान से यह बात जान ली।
उन्होंने उस किसान को राजभवन में बुलवाया। किसान आया। उसने देखा कि आसपास सुन्दर नृत्य हो रहे हैं। अनेक प्रकार के उत्सव भी हो रहे हैं। सम्राट ने उसके सिर पर एक पानी का घड़ा रखवाया और उसे राजमहल के सुन्दर दृश्य व उत्सव देखने का आदेश दिया। उसीके सम्मुख अपने सिपाही को प्रगट रूप में आज्ञा दी कि यदि इस किसान के घड़े से पानी की एक बूंद भी गिरी, तो तलवार से इसका शिरोच्छेदन कर देना। अलग बुलाकर सिपाही से भरतेश्वर ने यह भी कह दिया कि यह आदेश किसान के मन में भय पैदा करने को दिया गया है, इसका उपयोग नहीं करना है। इसके पश्चात् उस
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