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प्रतिज्ञा
२६४ है, तब तक तुम सिवनी मत जाना और केस का ही काम करना।" गुरुदेव के आदेश को हृदय से शिरोधार्य किया। १५ जुलाई, असाढ़ सुदी एकादशी, रविवार को आचार्य महाराज तथा नेमिसागर महाराज का केशलोंच ३ बजे दिन को बारामती के मन्दिर की धर्मशाला में सम्पन्न हुआ। अजैन लोग भी बहुत थे। केशलोंच के पूर्व आचार्य महाराज ने बारामती में चातुर्मास करने की प्रतिज्ञा की थी। यद्यपि पूर्णिमा को अभी चार दिन शेष थे, किन्तु पंचांग को देखकर आगे शुभ मुहूर्त न होने से एकादशी को निश्चय किया। परेशान
हम असाढ़ सुदी एकादशी की रात्रि को बारामती से चलकर शहा वकील के साथ बम्बई पहुंचे। वहाँ हमारे छोटे भाई अभिनन्दनकुमार का बड़ा चिन्ताप्रद पत्र मिला कि वृद्ध पिताजी को मंदिर में पूजा करते समय चक्कर आ गया। वे गिर पड़े, मस्तक पर गहरी चोट आई। इसके साथ में यह भी दुःखद समाचार था कि हमारी छोटी बहिन कमलाबाई भयंकर बीमार है और डाक्टरों ने उसे प्लूरिसी का रोग बताया है। इस पत्र के बाँचते ही अद्भुत परेशानी सामने आ गई। कुटुम्ब का ममत्व सिवनी को वायुयान तक से दौड़ने को कहता था, तो आचार्य महाराज की आज्ञा धर्म सेवा को स्मरण कराती थी।
कुछ क्षणों में मोह का भाव दबा, मंगलमय आचार्य परमेष्ठी की आज्ञानुसार धर्मसेवा का ही निश्चय किया। हमने यही सोचा कि वीतराग शासन के प्रसाद से आकुलता दूर होगी। हुआ भी ऐसा ही। कुछ काल के बाद संतोषप्रद संवाद प्राप्त हुआ। यथार्थ में धर्म की भक्ति का अचिन्त्य माहात्म्य है। तीर्थंकर की शरण लेने से कभी भी दुःख नहीं टिक सकता।
वहाँ हम लोगों ने हाईकोर्ट में जाकर पता लगाया तो ज्ञात हुआ, कि पेशी ता. २३ के स्थान में ता. २४ जुलाई, श्रावण कृष्ण षष्ठी, दिन मंगलवार को रखी गयी है। कई लोग सोचते थे, सर एन. पी. इंजीनियर बैरिस्टर की प्रतीक्षा करना आवश्यक है। किन्तु आचार्य महाराज का हृदय कहता था देर नहीं होनी चाहिए। उनके हृदय की प्रेरणा के अनुसार पेशी समीप ही रही। अब देहली पहुँचकर बैरिस्टर दास से परामर्श करने की बात थी। पटना में दास बाबू को श्री शहा वकील तथा हमने सारी ज्ञातव्य बातें कह दी थीं, अतः अब यदि परामर्श-योग्य स्थान बम्बई है, जहाँ श्री दास बाबू पेशी के पूर्व आवें तो वहाँ के वकील श्री पालखीवाला, श्री वोरा बैरिस्टर तथा श्री रमणलाल कोठारी, सालीसिटर नन्दलाल एण्ड कम्पनी के साथ सम्यक् परामर्श हो।
यही सोचकर हमने सर सेठ भागचन्द की पेढ़ी जुहार पैलेस पर जाकर उनके प्रमुख मुनीम सुन्दरलालजी से परामर्श किया। उन्होंने कहा, मैंने अभी थोड़ी देर पहले अजमेर से सेठ साहब से बात की थी, आप उस समय आ गये होते तो बड़ा अच्छा होता।
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