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चारित्र चक्रवर्ती जाते हैं, क्योंकि इंद्रियों का दमन करके, वे पुण्यकर्म का संचय करते हैं। सम्यक्त्व के अभाव में किया गया द्रव्यलिंगी मुनि का तप उसे अन्तिम ग्रैवेयक तक पहुँचाता है। यदि उस तप के साथ सम्यक्त्व का अमृत संयोग मिल जाय, तो निर्वाण को प्राप्त करने में देर नहीं लगती है। संयम के धारण करने से जीव नरकादि गतियों में नहीं जाता, भले ही यह संयम सम्यक्त्वरहित क्यों न हो।
अत: जब तक जीव को काललब्धि आदि साधन-सामग्री नहीं प्राप्त हुई है, तब तक भी संयम की शरण लेना श्रेयस्कर है। सदाचरण रूप प्रवृत्ति कभी भी पतन का कारण नहीं होगी, ज्ञानावरण के विशेष क्षयोपशमवश किसी की तपश्चर्या में चतुरता की कला को देख सम्यक्त्व प्राप्तिरूप अमृत बेला की कल्पना करना अयोग्य है 'तुष-माष-भिन्नं' दाल और छिलका जुदा है, इसी प्रकार मेरी आत्मा कर्म से पृथक् है, इस अल्प ज्ञान के द्वारा शिवभूति मुनि ने जीवन को सुविकसित कर सर्वज्ञ केवली का पद प्राप्त कर लिया
और तत्त्व विवेचना से विश्व को चकित करने वाला ग्यारह अंग और नौ पूर्व का पाठी व्यक्ति, महापंडित मिथ्यात्व के पंक में ही निमग्न रहा आता है। तुम्हारी काललब्धि आई है या नहीं, आने को है, इसे सिवाय महान् ज्ञानधारी मुनि के अन्य नहीं बता सकता है। मोक्षपाहुड में कुंदकुंद स्वामी ने लिखा है, सम्यक्त्व के अभाव में भी व्रतधारण करके स्वर्ग जाना अच्छा है, व्रत रहित होकर नरक में कष्ट भोगना अच्छा नहीं है। जब तक काललब्धि आदि सामग्री नहीं प्राप्त होती है, तब तक यही मार्ग हितकारी है। उनकी महत्वपूर्ण देशना इस प्रकार है - वरं वय तवेहि सग्गो मा दुक्खं णिरय इयरेहिं ।। एकान्त के चक्कर से बचो
इसलिए निरापद मार्ग यही है कि जिनेन्द्रभक्ति, शास्त्राध्ययन, व्रताचरण, सत्पात्र की समाराधना आदि व्यवहार धर्म की शरण ली जाय, कल्याणकारी उद्योग में निरत रहने वाला मानव, अंतरंग सामग्री का लाभ होने पर निःश्रेयस को प्राप्त करता है। कर्तव्य ___ परमागम के प्रतिकूल प्रवृत्ति तथा प्रतिपादन में पटु पुरुष पर-प्रतारणा के साथ स्वप्रतारणा के फलस्वरूप संसार सिन्धु के तल में निमग्न होता है, अत: एकांतवादियों के चक्कर से बचकर आचार्य शांतिसागर महाराज की देशना से लाभ लेना मंगलमय है। एकान्तपक्ष मिथ्यात्वी जीव में पाया जाता है। वह नियम से दुर्गति का पात्र होता है। जटिल समस्या
एक दिन मैंने आचार्य महाराज से पूछा था-"महाराज! आज का युग संयम की साधना के पूर्णतया प्रतिकूल है। जीवन निर्वाह के लिए भोजन की सामग्री तक पाना कठिन हो गया
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