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' आगम
३२४ मैंने पूछा, “महाराज ! प्रतिमाधारियों को शुद्ध धृत की उपलब्धि कंठिन हो गई है। किन्तु शरीर के लिए जीवन-तत्त्व की दृष्टि से स्निग्ध वस्तु आवश्यक है, अत: यदि वह शुद्ध तेल की घानी में शुद्ध तिलहन को पिरवाकर तेल लेवे, तो क्या हानि है ?
महाराज ने कहा, "व्रती शुद्ध घानी का निकला शुद्ध तेल ले सकता है।" मैंने पूछा, “महाराज! हमारे बाबाजी महान् धर्मात्मा थे। वे कहा करते थे कि यदि मैं मरणासन्न हो जाऊँ और रात्रि को प्यास के लिये पानी माँगू तो न देना। बीमारी की स्थिति में उनका बोलना बंद हो गया। लोगों की परवाह न कर उनकी प्रतिज्ञा के अनुसार जल नहीं दिया गया। इस विषय में ऐसा विकल्प उठा करता था कि यदि जल दे देते, तो उनको शायद लाभ हो जाता।"
महाराज ने कहा, “अच्छा हुआ जो उनकी प्रतिज्ञा के अनुसार जल नहीं दिया। सदा प्रतिज्ञा की रक्षा करनी चाहिए। जल नहीं मिलने से एक दिन में मरण नहीं हो जाता। आठ रोज भी बिना जल के रहा जा सकता है।"
मैंने पूछा, “महाराज ! एक सुशिक्षित त्यागी को सामायिक के समय स्तोत्रपाठादि करते देखा, तो ऐसा करना क्या उचित है ?" ___ महाराज ने कहा, “स्तोत्रपाठ स्वाध्याय है। सामायिक नहीं है।" वास्तुशुद्धि का प्रयोजन
मैंने पूछा, “महाराज! गृह आदि बनाने के बाद वास्तुशुद्धि का क्या प्रयोजन है ?
महाराज ने कहा, “गृहनिर्माण में हिंसा होती है, वृक्षादिकों को घात होता है। इससे भगवान् के अभिषेकपूर्वक विधान करने से वह स्थान शुद्ध होता है, उत्तम पात्र को आहार के योग्य होता है।
मैंने पूछा, “महाराज! कुआँ बनवाने के बाद वास्तु शुद्धि के समान, उसकी भी शुद्धि करना आवश्यक है क्या ?"
महाराज ने कहा, “कुएँ की शुद्धि होने के उपरांत वहाँ का जल भगवान् के अभिषेक के योग्य हो जाता है। कुआँ बनाने में जो जीवों का घात होता है, उस दोष की शुद्धि हेतु विधान करना आवश्यक है।" व्रती के विषय में
महाराज ने कहा, "व्रती को खोटी साक्षी देने नहीं जाना चाहिए। नल का पानी नहीं पीना चाहिए। जिस कुएँ में चमड़े की मोट चलती है, उसमें मोट बंद होने के दो घंटे बाद पानी लेवें। व्रतों से नहीं घबड़ाना चाहिए। चक्रवर्ती तक ने बारह व्रत पाले हैं। व्रती सावध दोष त्यागकर दो बार सामायिक करें। उसका जघन्यकाल दो घड़ी है। उसमें
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