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चारित्र चक्रवर्ती उपवास से क्या लाभ है ?
उपवास से क्या लाभ होता है इस विषय में उन्होंने अपनी अनुभव-पूर्ण वाणी से कहा था-“मदोन्मत्त हाथी को पकड़ने के लिए कुशल व्यक्ति उसे कृत्रिम हथिनी की ओर आकर्षित कर गहरे गड्ढे में फँसाते हैं। उसे बहुत समय तक भूखा रखते हैं। इससे उस हाथी का उन्मत्तपना दूर हो जाता है और वह छोटे-से अंकुश के इशारे पर प्रवृत्ति करता है। वह अपना स्वच्छंद विचरना भूल जाता है। इसी प्रकार इंद्रिय और मन उन्मत्त होकर इस जीव को विवेकशून्य बना पापमार्ग में लगाते हैं। उपवास करने से इंद्रिय और मन की मस्ती दूर हो जाती है और वे पापमार्ग से दूर हो आत्मा के आदेशानुसार कल्याण की ओर प्रवृत्ति करते हैं।" संयम का ध्येय कर्मों को धक्का मारकर निकालना है
महाराज ने कहा- “संयम का लक्ष्य इन्द्रिय एवं मन को जीतना है। संयम का ध्येय चिरसंचित कर्मों को धक्का मारकर निकालने का है। संयम करने वाला तपस्वी दैव की छाती पर सवार होकर कर्मक्षय करता है। तपस्या कर्मक्षय की दवाई है।" अपूर्व अनुभव मैंने कहा-“महाराज! यह औषधि तो बड़ी कड़वी है।"
महाराज ने कहा-“अच्छी औषधि कड़वी ही लगती है। रोगी को शक्कर-घी की दवाई नहीं दी जाती। उसे दी जाती है कटु औषधि, जिससे शरीर में घुसा हुआ रोग दूर होता है। इसी प्रकार जन्म-मरण, संकुल संसार परिभ्रमण का रोग दूर करने को तप कारण है। उसके द्वारा मिथ्यात्वी को भी नवग्रैवेयक तक का सुख मिलता है।"
तप के विषय में महाराज ने बड़े अनुभव की बात बताई थी, “शरीर पर एकदम बड़ा बोझा डाल दिया जाय, तो वह उसे नहीं सँभाल पाता है, किन्तु यदि धीरे-धीरे बोझा बढ़ाया जाय तो वह सहन हो जाता है। इसी प्रकार थोड़ा-थोड़ा व्रत तथा उपवास का भार बढ़ाने से आत्मा को पीड़ा नहीं होती और धीरे-धीरे उसकी शक्ति बढ़ती जाती है।"
महाराज ने कहा था, "हमने यह अपने अनुभव की बात कही है।" गरीबी का सफल इलाज
आज जगत् में कोई गरीबी के कारण दु:खी है। वह धनवान को सुखी देखकर अन्तर्दाह मे संतप्त होता हुआ उसके समान सम्पत्तिशाली बनना चाहता है। उनके लिए कोई-कोई यह उपाय सोचते हैं कि उस धनी के धन को छीन लिया जाय। बस, इसके सिवाय निर्धनता की पीड़ा से बचने का कोई दूसरा उपाय नहीं है।
इस संबंध में आचार्य महाराज ने कहा था, “गरीबी के संताप को दूर करने के लिए
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