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चारित्र चक्रवर्ती जीवन का हमारा क्या प्रयोजन ? हमें उसको समाप्त करना होगा।" ज्योतिष शास्त्र द्वादशांग वाणी का अंग मान कर वे उसे प्रमाण रूप मानते थे तथा अपने धार्मिक कामों में ज्योतिष का आश्रय लेते भी थे, यहा उनका भाव वर्तमान के बहुत से झूठे ज्योतिषियों को लक्ष्य कर उन पर अविश्वास व्यक्त करना था।
शास्त्रों में लिखा है कि समाधिमरण के लिए मुनि को निर्वाण-भूमि में जाना चाहिए इसलिए अब आचार्य महाराज का विचार किसी निर्वाण-स्थल में रहने का हो रहा था। ___ महाराज के पुण्य प्रभाव की घटना २६ अगस्त को लोणन्द के एक अजैन बन्धु ने सुनाई। वहाँ के नाले के तट पर मुनियों के निवास के लिए पाषाण की कुटी बन रही थी। उसके भीतर एक बालक काम करताथा। नींव कमजोर होने के कारण वह कुटी धाराशाई हो गई सैकड़ों मन-पाषाण-राशि के मध्य उस दीन बालक का रक्षण स्वप्न में भी असंभव था, किन्तु पुण्योदय था, जिस कोने में वह बालक खड़ा था, वहाँ के कुछ पाषाण नहीं गिरे और वह बालक कहने लगा-"मुझे यहाँ से बचा लो।" तपोमूर्ति का प्रभाव ___ उस बालक को पूर्णतया सुरक्षित ज्ञात कर हजारों लोग उस स्थल पर आये। प्रत्येक के मुख से यही बात निकल रही थी-“इन महात्मा की तपश्चर्या के प्रभाव से आज इस बच्चे का जीवन बचा। कदाचित् कुटी के भीतर और साधुजन पहुँच जाते और उस काल में वह गिर पड़ती तब न जाने क्या होता? सौभाग्य से कोई क्षति नहीं हुई। यह तपोमूर्ति का प्रभाव है।" तत्त्वचर्चा
तात्त्विक चर्चा में महाराज ने बताया था-"क्षुल्लक केशलोंच का अभ्यास करता है, उससे नीचे की प्रतिमा वालों को केशों का लोंच नहीं करना चाहिए।"
"व्रती श्रावक को नल का पानी नहीं पीना चाहिए। वह नल के जल में स्नान करे तो बाधा नहीं है। पर्व में उपवास के बदले शक्ति न होने पर एकाशन करे।"
महाराज के पास वीतरागता का भण्डार भरा था। उनका अनुभव महान् था। उनका जीवन सुलझा हुआ था। वे तो भवसिन्धु में भटकने वाले नाविकों के लिए प्रकाश-स्तंभ (Light house) के समान थे, जिनसे ज्योति पा जीवन-नौकायें डूबने से बचकर इष्ट स्थल को पहुँच सकती हैं। उनकी वीतरागता अलौकिक थी।
यथार्थ में उनके जीवन की महत्ता को प्रयत्न करते हुए भी प्रकाशित करने में हमारी स्थिति उस गूंगे के समान है, जो देवताओं के प्रिय सुधारस का पान करते हुए दूसरे लोगों के समक्ष उनके माधुर्य का वर्णन नहीं कर सकता।
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