________________
३६६
चारित्र चक्रवर्ती
कर मैंने प्रणाम किया। चरणों में चंदन लगा था । चरण की लम्बी गज रेखा स्पष्ट दृष्टिगोचर हुई । चाँदी के पुष्प भी चरणों पर रखे दिखाई दिये। मुझे अन्य लोगों के साथ उस विमान को कंधा देने का प्रथम अवसर मिला ।
ॐ सिद्धायनमः की उच्च ध्वनि
सूर्य अस्तंगत होने से व्यथित भव्य समुदाय ॐ सिद्धाय नमः, ॐ सिद्धाय नमः का उच्च स्वर से उच्चारण करता हुआ विमान के साथ बढ़ता जा रहा था। थोड़ी देर में विमान क्षेत्र के बाहर बनी हुई पाण्डुक शिला के पास लाया गया। पश्चात् पावन पर्वत की प्रदक्षिणा देता हुआ विमान पर्वत पर लाया गया।
महाराज का शरीर जब देखो ध्यान मुद्रा में ही लीन दिखता था। दो बजे दिन के समय पर्वत पर मानस्तम्भ के समीपवर्ती स्थान पर विमान रखा गया। वहाँ शास्त्रानुसार शरीर के अंतिम संस्कार, लगभग १५ हजार जनता के समक्ष कोल्हापुर जैन मठ के भट्टारक श्री लक्ष्मीसेन स्वामी ने कराया । आचार्यश्री के पावन शरीर के पृष्ठ भाग का दूध दही आदि के घड़ों से सेठ गोविंदजी के परिवार, घराने द्वारा अभिषेक हुआ।
अंतिम संस्कार
पृष्ठभाग का ही अभिषेक क्यों किया जाय ? इस विषय में आचार्यश्री ने पहले मुझे बताया था कि यदि सामने के भाग का अभिषेक कराया जाय और कदाचित् क्षपक के शरीर से सूक्ष्म रूप से प्राण रहे आवे, तो उसकी प्रतिज्ञा भंग होने का प्रसंग आ जायगा । इससे पिछले भाग का ही अभिषेक करना चाहिए।
प्रदीप्त अग्नि
अभिषेक होते ही चंदन, नारियल की गरी, कपूर आदि द्रव्यों से पद्मासन बैठे हुए उस शरीर को ढांकने का कार्य शुरु हुआ । देखते-देखते आचार्यश्री का मुखमण्डल भर जो दृष्टिगोचर होता था, कुछ क्षण बाद वह भी उस दाह- द्रव्य में दब गया। विशेष मंत्र से परिशुद्धि की गई । अनि के द्वारा शरीर का चार बजे शाम को दाहसंस्कार प्रारंभ हुआ । ' कपूर आदि सामग्री को पाकर अग्नि को वृद्धिंगत होते देर न लगी । अग्नि की बड़ी-बड़ी ज्वालाएँ पवन का सहयोग पाकर चारों दिशाओं मे फैलकर दिग्दिगन्त को पवित्र बना रही थी । देह का दाह संस्कार हो गया था ।
आचार्य महाराज के शरीर को भस्मीभूत करने में इस प्रकार सामग्री लगी थी- पच्चीस मन चंदन, डेढ़ मन घी, तीस मन नारियल तथा तीन बोरा कपूर आदि ।
गाँधीजी के शरीर - दाह में पन्द्रह मन चंदन, दो मन धूप, चार मन घी, एक मन नारियल तथा पंद्रह सेर कपूर लगा था ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org