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पावन समृति महाराज बोले, छोटे-छोटे बच्चों की शादी की अनीति चल रही है। अबोध बालकबालिकाओं का विवाह हो जाता है। लड़के के मरने पर बालिका विधवा कहलाने लगती है। उस बालिका का भाग्य फूट जाता है। इससे तुम बाल-विवाह-प्रतिबंधक कानून बनाओ। इससे तुम्हारा जन्म सार्थक हो जायगा। इस काम में तनिक भी देर नहीं हो।"
कानून के श्रेष्ठ पंडित दिवान लढे साहब की आत्मा आचार्य महाराज की बात सुनकर अत्यन्त हर्षित हुई। मन ही मन उन्होंने महाराज की उज्ज्वल सूझ की प्रशंसा की। गुरुदेव को उन्होंने यह अभिवचन दिया कि आपकी इच्छानुसार शीघ्र ही कार्य करने का प्रयन्त करूँगा। दीवान श्री लढे की कार्यकुशलता
गुरूदेव के चरणों को प्रणाम कर लट्टे साहब महाराज कोल्हापुर के महल में पहुंचे। महाराज साहब उस समय विश्राम कर रहे थे, फिर भी दीवान का आगमन सुनते ही बाहर आ गये।
दीवानसाहब ने कहा, “गुरु महाराज बाल-विवाह प्रतिबन्धक कानून बनाने को कह रहे हैं। राजा ने कहा, तुम कानून बनाओं मैं उस पर सही कर दूंगा।" तुरन्त लट्टे ने कानून का मसौदा तैयार किया। कोल्हापुर राज्य का सरकारी विशेष गजट निकाला गया, जिसमें कानून का मसौदा छपा था। प्रातःकाल योग्य समय पर उस मसौदे पर राजा के हस्ताक्षर हो गये। वह कानून बन गया। ___ दोपहर के पश्चात् सरकारी घुड़सवार सुसज्जित हो एक कागज लेकर वहाँ पहुंचा, जहाँ आचार्य शांतिसागर महाराज विराजमान थे।
लोग आश्चर्य में थे कि अशांति और उपद्रव के क्षेत्र में विचरण करने वाले वे शस्त्रसज्जित शाही सवार यहाँ शान्ति के सागर के पास क्यों आए हैं ? महाराज के पास पहुँचकर उन शस्त्रालंकृत घुड़सवारों ने उनको प्रणाम किया और उनके हाथ में एक राजमुद्राअंकित बंद पत्र दिया गया।
लोग आश्चर्य में निमग्न थे कि महाराज के पास सरकारी कागज आने का क्या कारण है ? क्षण भर में कागज पढ़ने पर ज्ञात हुआ कि उसमें महाराज को प्रणामपूर्वक यह सूचित किया गया था कि उनके पवित्र आदेश को ध्यान में रखकर कोल्हापुर सरकार ने बाल-विवाह-प्रतिबन्धक कानून बना दिया है। महाराज के मुखमण्डल पर एक अपूर्व आनन्द की आभा अंकित हो गई। सर्वतोभद्र सुधारक
भारत सरकार ने जब बाल-विवाह कानून पास किया था, तब समाज के स्थितिपालक
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