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पावन समृति
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एक समय की बात है कि पूज्यश्री का वर्षा योग जयपुर नगर में व्यतीत हो रहा था । कुचड़ी (दक्षिण) के मंदिर के लिए ब्र. बंडू रत्तू पंचों की ओर से मूर्ति लेने जयपुर आए । महाराज के दर्शन कर कहा - "स्वामिन् ! पंचों ने कहा है कि पूज्य गुरुदेव की इच्छानुसार मूर्ति लेना। उनका कथन हमें शिरोधार्य होगा ।"
महाराज ने कहा- " वहाँ महावीर भगवान् की मूर्ति विराजमान होगी, ऐसा हमें लगता है, किन्तु तुम तार देकर पंचों से पुनः पूछ लो । "
महाराज के कहने पर पंचों को तार दिया गया। वहाँ से उत्तर आया-' स्वामी की प्रतिमाजी लाना।"
महाराज ने कहा- "क्यों ! हम कहते थे न कि पंचों का मन स्थिर नहीं है। अच्छा हुआ, खुलासा हो गया। हमने तुमसे महावीर भगवान् की मूर्ति के विषय में कहा था। कारण, हमें वहाँ के मंदिर में महावीर भगवान् की प्रतिमा दिखती थी । "
शिल्पी ने कुछ समय बाद भगवान् पाश्वनार्थ स्वामी की प्रतिमा बना दी, किन्तु मूर्ति का फणा खंडित हो गया । यह समाचार जब कुड़ची के पंचों को मिला, तब उन्होंने तार भेजकर लिखा कि जो मूर्ति तैयार मिले, उसे ही भेज दो। तदनुसार मूर्ति रवाना की गई। वह मूर्ति महावीर भगवान् की ही थी, जिसमें सिंह का चिन्ह था । मूर्ति को देखते ही सबको आश्चर्य हुआ कि आचार्य महाराज ने पहले ही कह दिया था कि हमें तो महावीर भगवान् की मूर्ति दिखती है। ऐसे ही ज्ञान को दिव्यज्ञान कहते है । साधनसंपन्न तपस्वियों में ऐसी असाधारण बातें देखी जाती है।
हमारी कर्त्तव्य - विमुखता
आज के राजनैतिक प्रमुखों के क्षण-क्षण की वार्ता जिस प्रकार पत्रों में प्रगट होती है, वैसी यदि सूक्ष्मता से इन महामना मुनिराज की वर्ताओ का संग्रह किया गया होता, तो वास्तव में विश्व विस्मय को प्राप्त हुए बिना नहीं रहता। इस पापप्रचुर पंचमकाल में सत्कार्यों के प्रति बड़े-बड़े धर्मात्माओं की प्रवृत्ति नहीं होती है। वे कर्त्तव्य पालन में भूल जाते हैं। कई वर्षो से मैं प्रमुख लोगों से, जैन महासभा के कार्यकर्ताओं आदि से, पत्र द्वारा अनुरोध करता था कि आचार्य महाराज के उपदेशों को रेकार्ड किया जाना चाहिए, किन्तु आज करते हैं, कल करते हैं, ऐसा करते-करते वह आध्यात्मिक सूर्य हमारे क्षेत्र की अपेक्षा अस्तंगत हो गया, यद्यपि उस सूर्य का उदय स्वर्गलोक में हुआ है।
मंगलमय भाषण की विशेष बात
- "भगवान् पार्श्वनाथ
आचार्य महाराज का २६ वें दिन जो मंगलमय भाषण रेकार्ड हो सका, इसकी भी अद्भुत कथा है। नेता बनने वाले लोग कहते थे, अब समय चला गया। महाराज इतने
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