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चारित्र चक्रवर्ती
सन् १९५१ काभारत व सरकारी नीतियाँ एक दिन मैंने आचार्य महाराज से पूछा था-"महाराज! आज का युग संयम की साधना के पूर्णतया प्रतिकूल है। जीवन निर्वाह के लिए भोजन की सामग्री तक पाना कठिन हो गया है, इसलिए दो जैन प्रोफेसरों ने पूना में हमसे पूछाथा कि आज के युग में हिंसा किए बिना निर्वाह कैसे होगा? अनाज की उपज कम हो गई है, इसलिए माँस भक्षण की प्रेरणा दिए बिना जीवन-यात्रा नहीं बन सकती है। बन्दर आदि धान्यघातक जानवरों को मारे बिना अन्य उपाय नहीं है। ऐसे समय में जैनधर्म के अनुसार कैसे लोकहित का संपादन हो सकता है ? राष्ट्र के हित के लिए जीवों का वध करना आवश्यक कर्तव्य हो गया है। इसीसे भारत सरकार बन्दरों आदि घातक जानवरों के मारने को उत्साहित करती है। अहिंसाभक्त भारत सरकार का सूचना-विभाग बताता है कि बम्बई में भारत सरकार ने १२ लाख रुपयों के खर्च से ऐसा कारखाना तैयार किया है कि उसमें प्रतिदिन १५ टन मछलियाँ जमा की जावेगी तथा २५० टन मछली (आपात) समय के लिए सुरक्षित रखी जायेंगी इत्यादि।प्रतिदिन लगभग २० टन बर्फ भी तैयार किया जायगा, जिससे कि मछलियों को ठंडा करके जमाया जा सके। उस सरकारी सूचना-विभाग ने यह भी बताया है कि इससे महिनों पर्यन्त मछलियों का रंग, रूप, स्वाद ज्यों का त्यों बना रहेगा। (उद्योग-भारती,कलकत्ता, दिस.५१) __दैनिक सन्मार्ग, ३ सितम्बर सन् १९५१ में अहिंसावादी भारत सरकार की हिंसक प्रवृत्ति के विषय में यह समाचार छपा था कि करनाल जिले में जंगली पशुओं की हत्या के हेतु पंजाब सरकार ने दस हजार रुपयों के इनाम की घोषणा की है। बन्दर मारने पर प्रत्येक बन्दर पीछे २ रुपये इनाम मिलेगा। प्रमाण के लिए मरे बन्दरों की पूँछे प्रथम श्रेणी के न्यायाधीश के सामने पेश करनी होगी। सन् १९५० में २७२५१ बन्दर मारे गए थे।५०१६ गीदड़ों का नाश किया गया था। इनके नाश का कारण यह बताया जाता है किइनके कारण आवश्यक अन्न को क्षति पहुँचती है। भारत सरकार ने जापान के हिंसक विशेषज्ञों को बुलाकर मछली मारने के कार्य में अपना लम्बा कदम उठाया। केरल प्रांत में मेढकों को मारकर उनके रोिं को अमेरिका भेजा जाता है। इस प्रकार असंख्य जीवों के संहार द्वारा धनसंचय का उद्योग चल रहा है। जीववध के क्षेत्र में धर्मभूमि भारत के कर्णधार भयंकर रूप से बढ़ रहे हैं। जितनी हिंसा हिंसक देशों में हो रही है, उससे अधिक अहिंसक देश भारत में हो रही है। -प्रभात,*जटिल समस्याव*सामयिक अन्नसंकट में क्या करें,
पृष्ठ ३१६-३२०
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