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सल्लेखना वे देवताओं के ऋषि हीनाधिकता रहित, विषयों से विरक्त अनुप्रेक्षाओं की भावना में लीन तथा शेष देवताओं के द्वारा वंदनीय होते हैं। देवर्षि यही चाहा करते हैं, कि कब उनको इस स्वर्ग के मनोज्ञ कारागार से मुक्ति मिले और वे नर पर्याय प्राप्त कर पुन: अविनाशी मुक्ति की प्राप्ति के लिए तपश्चर्या के पथ में प्रवृत्त हों।
शंका- ये श्रेष्ठ सम्यग्ज्ञानी श्रेष्ठ सुर-पूज्य सुरराज वहाँ से ही क्यों नहीं मुक्त होते है, क्योंकि सम्यग्ज्ञानी क्षणमात्र में समस्त कर्मो का क्षय करता है।
समाधान- सम्यग्ज्ञान के साथ ही तीन गुप्ति और चाहिए। मन, वचन तथा काय की क्रियाओं का निरोधरूप पूर्ण गुप्ति का पालन दिगम्बर मुनिश्वर ही कर सकते हैं। अत: वे लौकान्तिक देव उस श्रमण-जीवन की आकांक्षा करते हुए अपना काल धर्मध्यान में बिताते हैं। प्रमादी लोग मनुष्य-धर्म में भी व्रताचरण से जी चुराते हुए अपने काल्पनिक ज्ञान द्वारा पंचम काल में ही मोक्ष जाने की सोचते है। यह धारणा सम्यक्तवी की नहीं रहती है। समाधिजन्य आनन्द का अभाव |
स्वर्ग में सब सुख हैं; किन्तु वहाँ संयमानुगामिनी उच्च समाधिजन्य शांति नहीं है, यह बात आज शांतिसागर महाराज की आत्मा के अनुभव में आती होगी। आत्मा के आनन्द की समता इंद्रियजनित सुख कभी भी नहीं कर सकता है। एक आनन्द स्वाभाविकता की ज्योति धारण करता है और दूसरा इंद्रियजनित सुख रूप विभावपरणति है। इस कारण सम्यग्दृष्टि लोग स्वर्ग के सुखों में भी अनासक्त रहते हैं। पंचाध्यायी में लिखा है
शक्र-चक्र-धरादीनां केवलं पुण्य शालिनाम्।
तृष्णा बीजं रतिस्तेषां सुखावप्ति: कुतस्तनी॥ महान् पुण्यशाली इन्द्र, चक्रवर्ती आदि का सुख तृष्णा का बीज है। उनके सच्चे सुख की प्राप्ति कैसे हो सकती है? सच्चा सुख शुद्धापयोगी परम वीतराग यथाख्यातचारित्रधारी मुनीश्वर को प्राप्त होता है। भक्तों की आकांक्षा
आचार्यश्री की यम समाधि के समय एक भक्त ने महाराज से कहा था, “महाराज, आप देव, देवेन्द्र होंगे। वहाँ से यहाँ कभी आकर हम लोगों को अवश्य संबोधन की कृपा कीजिए।" इस प्रलाप को सुनकर महाराज चुप रहे थे। इस काल में स्वर्ग से कल्पवासी देव यहाँ नहीं आते हैं। ऐसा शास्त्र में कहा गया है। अत: आगम के प्रकाश में युक्त प्रार्थना वस्तुत: सारशून्य ही तो थी। भवनत्रिक के देवों का आगमन हो सकता है। षट्खंडागम की रचना पूर्ण होने पर देवों का आगमन हुआ था, ऐसा धवला टीका में कहा है अन्य प्रसंगो का भी वर्णन आता है।
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