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पावन समृति लेख के अनुसार असल से अधिक द्रव्य लेता है तो वह अनाचार दोष हो जायगा।
प्रश्न-“दर्शनविशुद्धिभावनायुक्त क्षयोपशम सम्यक्त्वी और उससे रहित क्षायिक सम्यक्त्वी में कौन महान् है ?"
उत्तर-"तीर्थंकर प्रकृति का बंध करने वाला क्षयोपशम सम्यक्त्वी महान् है। कारण, वह स्वयं संसार- समुद्र के पार जाते हुए अगणित प्राणियों को भी मोक्ष में पहुंचाता है।"
प्रश्न-“केवली भगवान् के तेरहवें गुण-स्थान में योग का क्या कारण है ?"
उत्तर-“चौरासी लाख उत्तरगुणों की पूर्णता न होने से कर्मों का आस्त्रव होता है।" अज्ञानतावश छठवें गुणस्थान में ही लोग उत्तरगुणों की पूर्णता सोचते हैं। अयोगकेवली के उत्तरगुणों की पूर्णता होती है। दयापूर्ण दृष्टि
लोग महाराज को आहार देने में गड़बड़ी किया करते हैं, इस विषय में मैंने श्रावकों को जब समझाया कि जिस घर में महाराज पड़गाहे जॉय, वहाँ दूसरों को बिना अनुज्ञा के नहीं जाना चाहिए, अन्यथा गड़बड़ी द्वारा दोष का संचय होता है। मैं लोगों को समझा रहा था, उस प्रसंग पर आचार्यश्री ने मार्मिक बात कही थी।
महाराज बोले-“यदि हम इस गड़बड़ी को बंद करना चाहें, तो एक दिन में सब ठीक हो सकता है। यदि एक घर के भोज्य पदार्थ का नियम ले लिया, तब क्या गड़बड़ी होगी ? लोगों का मन न दुखे और हमारा काम हो जाय, हम ऐसा कार्य करते हैं।" आहार की विचित्र कथा
विपरीत परिस्थिति में भी क्षमा भाव न छोड़ना मुनि का धर्म है। इस प्रसंग में एक मुनि की बात आचार्य महाराज ने बताई थी, जिनके हाथ में किसी मूढ़ स्त्री ने खोलती खीर डाल दी। उस खीर को उन्होंने उस स्त्री के ऊपर ही उछाल दिया, वह औरत चिल्ला उठी, तब उन मुनिराज ने कहा-“तूने हमारे हाथ में खौलती खीर डालते समय नहीं सोचा कि इनका क्या हाल होगा?"
एक बार आचार्यश्री के हाथ में दक्षिण में उबलता दूध एक गृहस्थ ने डाला था, उससे वे मुर्छित हो गए थे, किन्तु उनमें जरा भी अशांति का आविर्भाव नहीं हुआ था। सचमुच में आचार्य शांतिसागर महाराज का नाम सार्थक था, ऐसे महान् साधु इस युग में आश्चर्य की वस्तु थे। वृद्धा की समाधि ___ कुंथलगिरि में सन् १९५३ के चातुर्मास में लोणंद की करीब ६० वर्ष वाली बाई ने १६ उपवास किए थे, किन्तु १५ वें दिन प्रभात में विशुद्ध धर्मध्यानपूर्वक उसका शरीरांत
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