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चारित्र चक्रवर्ती तक पाप-प्रवृत्तियों से जीव को दूर कर पुण्य की ओर उसका मन नहीं खींचा जायगा, तब तक उसका कैसे उद्धार होगा?" मार्मिक बात
समन्तभद्रस्वामी ने कहा है ‘पापं अरातिः' - पाप शत्रु है। 'धर्मः बंधुः' अर्थात् धर्म बंधु है। उन्होंने पुण्य अरातिः नहीं कहा हैं। जो गृहस्थ आगम के बन्धन से विमुक्त हो गए हैं वे 'पुण्यं अरातिः पापः बंधुः' के पाठ द्वारा अपनी अद्भुत तत्वदृष्टि को पोषण प्रदान करते हैं। जीवन में वे पुण्यवानों के प्रति दासता दिखाते हैं, किन्तु वाणी से कहते हैं 'पुण्यं शत्रुः, पापः बन्धुः। भवितव्यतानुसार बुद्धि होती है। शासन का दोष
वर्तमान देश के अनैतिक वातावरण पर चर्चा चलने पर महाराज ने कहा था-"इस भ्रष्टाचार में मुख्य दोष प्रजा का नहीं, शासनसत्ता का है। गांधीजी ने मनुष्य सामान्य पर दया के द्वारा लोक में यश और सफलता प्राप्त की और जगत् को चकित कर दिया। इससे तो धर्म का गुण दिखाई देता है। यह दया यदि जीवमात्र पर हो जाय तो उसका मधुर फल अमर्यादित हो जायगा। आज तो सरकार जीवों के घात में लग रही है, यह अमंगलरूप कार्य है। भगवान् की वाणी है 'हसा-प्रसूतानि सर्वदुःखानि'- समस्त कष्टों का कारण हिंसात्मक जीवन है।" शुभ चिन्ह
एक दिन महाराज कहने लगे-“दिन को न सोना शुभ चिन्ह है। संघपति गेंदनमल का हमारा करीब ३० वर्ष का परिचय है। वे कभी भी दिन को नहीं सोते, चाहे रात को कितने भी जगे हों।" जन्मांतर का अभ्यास
महाराज ने संघपतिसेठ गेंदनमलजी के समक्ष हमसे कहा था कि हमें ऐसा लगता है, "इस भव के पूर्व में भी हमने जिन मुद्रा धारण की होगी।"
हमने पूछा-"आपके इस कथन का क्या आधार है ?"
उत्तर-“हमारे पास दीक्षा लेने पर पहले मूलाचार ग्रंथ नहीं था, किन्तु फिर भी हम अपने अनुभव से जिस प्रकार प्रवृत्ति करते थे, उसका समर्थन हमें शास्त्र में मिलता थाऐसा ही अनेक बातों में होता था। इसमें हमें ऐसा लगता है कि हम दो-तीन भव पूर्व अवश्य मुनि रहे होंगे।" गृहस्थ जीवन पर चर्चा
अपने विषय में पूज्यश्री ने कहा-“हम अपनी दुकान में ५ वर्ष बैठे। हम तो घर के
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