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चारित्र चक्रवर्ती कथन उनके अनुभव पर आश्रित है। ऐसे अनुभवी आज कहाँ हैं। बातें करने वाले मिठूलाल बहुत मिलेंगे। आत्मा की खोज सरल है
उन योगिराज ने कहा,“ ये तिल में तेलवत् इस शरीर में आत्मा व्याप्त है। अपनी आत्मा क्या अपने को नहीं मिलेगी ? समुद्र में मछली की खोज कठिन है; किन्तु लोटे के पानी में वह पड़ी हो, तो उसे पाना सरल है, इसी प्रकार अपने शरीर में विद्यमान आत्मा की खोज भी सरल है। प्रतिदिन आत्मा का चिन्तवन करो। कम से कम दो घड़ी प्रमाण मनवचन-काय कृत, कारित, अनुमोदना इन नवकोटि से सावद्य दोष का त्याग करो। आत्मध्यान से लाभ
“इससे ध्यान द्वारा गृहस्थ होते हुए भी तुम महान् निर्जरा करोगे। २४ घंटे में पन्द्रह मिनट आत्मा का ध्यान करो। इससे असंख्यातगुणी निर्जरा होती है। इसके सिवाय भगवान् ने मोक्ष का दूसरा उपाय नहीं कहा है।" पुरुषार्थ के लिए प्रेरक उदाहरण ___ महाराज ने मोक्ष मार्ग में सत्साहसपूर्वक प्रवृत्ति के लिए यह प्रेरक उदाहरण दिया था, “एक राजा था। उसके बुढ़ापे में एक ही पुत्र हुआ। उसे बड़े लाड़ प्यार से पाला। उसने खेल कूद में समय नष्ट कर दिया और कुछ भी विद्या नहीं सीखी। एक दिन राजा ने दीक्षा ले ली और पुत्र को राजा बना दिया ।
उस राज्य पर दूसरे राज्य का आक्रमण हो गया। उस समय एक पत्र ऐसा आया, जिसे राजा के सिवाय दूसरे को पढने की आज्ञा नहीं थी, अत: वह जरूरी पत्र इस नवीन राजा के पास लाया गया। निरक्षर होने के कारण उसे पाते ही उसके नेत्र अश्रुपूर्ण हो गए।
उस समय मन का संताप दूर करने को चतुर मंत्री ने उनको बाहर चलने को कहा। ये बाहर भ्रमणार्थ गए। वहाँ देखा पानी खींचने की कोमल रस्सी से कठोर काला पाषाण गड्ढायुक्त हो गया है। इसी प्रकार प्रयत्न द्वारा क्या मेरी आत्मा मुझे न मिलेगी? राजा को विद्या सदृश आत्मा का ध्यान भी बनेगा। _प्रयत्न करते रहना हितकारी हैं । “यत्नवत: श्रेयोस्त्येव" - सत्कार्य में संलग्न रहकर उद्योग करने वाले का कल्याण ही होता हैं। वह पापास्त्रव से बचकर दुर्गति के सिन्धु में डूबने से बचेगा। जीवन-शोधन की समुज्वल साधना सतत उद्यत रहना सत्पुरुष का प्राथमिक कर्त्तव्य होना चाहिए। शरीरादि की सेवा में अनंत काल बीत चुका है। अब उस अंधकार का मार्ग त्यागकर प्रकाश की ओर आना हितकारी है।
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