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चारित्र चक्रवर्ती दिन पर्यन्त चलने वाली समाधि से की जा सकती है। पंचम काल में महान् बलयुक्त शरीरसम्पन्न ये साधुराज भी तो महाबल थे। अग्नि में जैसे वनस्पति भी जल जाती है, उसी प्रकार तपोग्नि में महाराज का शरीर भी दग्धसदृश हो गया था। महाबल राजा का जीव दसवें भव में ऋषभनाथ तीर्थंकर हुआ है। महाबल राजा ने स्वकृत और परकृत दोनों प्रकार के उपचारों से रहित श्रेष्ठ प्रायोपगमनरूप संन्यास मरण लिया था। महापुराण का चित्रण
आचार्य महाराज ने इंगिनीमरण लिया था, उसमें दूसरों के द्वारा अपने शरीर की परिचर्या और सेवा का परित्याग किया जाता है। स्वयं शरीर की सेवा का त्याग नहीं होता। महाकवि जिनसेन ने महाबल की मानसिक और शारीरिक अवस्था का जो चित्रण किया था, वही रूप इन साधुराज के विषय में भी था।
आचार्य लिखते हैं-“कठिन तपस्या करने वाले महाबल महाराज का शरीर तो कृश हो गया था, परन्तु पंच परमेष्ठियों के स्मरण के कारण उनके भावों में विशुद्धि बढ़ रही थी। निरन्तर उपवास करने के कारण उन महाबल के शरीर में शिथिलता अवश्य आ गई थी, किन्तु ग्रहण की गई प्रतिज्ञा में रंचमात्र भी शिथिलता नहीं आई थी। सो ठीक है, क्योंकि प्रतिज्ञा में शिथिलता नहीं करना ही महापुरुषों का व्रत है। रक्त मांस आदि के क्षययुक्त तथा रसरहित शरीर, शरदकालीन मेघों के समान क्षीण हो गया था। उस समय वह राजा देवों के समान रक्त, मांसादि रहित शरीर को धारण कर रहा है। राजा महाबल ने मरण का प्रारम्भ करने वाले व्रत धारण किये हैं, यह देखकर उसके दोनों नेत्र मानों शोक से ही कहीं जा छिपे थे अर्थात् नेत्र भीतर घुस गये थे। वे पहले विलासों में विरत हो गये थे। महाबल के दोनों गालों के रक्त, मांस, चमड़ा आदि सब सूख गये थे, तथापि उन्होंने अपनी अविनाशी कान्ति का परित्याग नहीं किया था।"
ऐसी ही स्थिति हमने महाराज शांतिसागरजी के शरीर की देखी थी। शरीर की क्षीणता का तो क्या वर्णन किया जा सकता है ? अस्थिपंजर मात्र शेष था। दीप्ति अपूर्व थी। रत्नत्रय की अन्तरंग दीप्ति वृद्धिगत हो रही थी। इसका ही सम्भवत: प्रभाव शरीर पर प्रगट हो रहा था। शरीर की अवस्था
महाबल राजा का वर्णन करते हुए आचार्य लिखते हैं-“समाधिमरण ग्रहण के पूर्व जो कंधे अत्यंत स्थूल थे तथा बाहु-बन्ध की रगड़ से अत्यन्त कठोर थे। उस समय वे अतिशय कोमलता को प्राप्त हो गये थे। उनका उदर कुछ भीतर की ओर झुक गया था और त्रिवली भी नष्ट हो गई थी। इसलिए ऐसा जान पड़ता था, मानो पवन के न
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