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सल्लेखना
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अनुराग जागृत हो जाता ता । अत्यन्त परिचित ब्र. बंडू को महाराज कहते थे- “अरे ! तू सन्यासी हो जा । मरे साधु का कलेवर और प्राणधारी गृहस्थ समान हैं। इतना ही नहीं, साधु का मृतदेह जो काम करता है, वह गृहस्थ भी नहीं करता है। मेरे पीछे तुझे कोई और कहने को आने वाला नहीं है। पीछी धारण कर मरो। ऐसे ही मत मरना । आत्मकल्याण करने के कार्य में रुको मत। मेरा बेटा है, भाई है, धन है, आदि की बात मत सोचो। " अनुभूतिपूर्ण कथन
महाराज की यह वाणी बहुत गहरी अनुभूति को प्रदर्शित करती है - "अरे ! निर्दयी होकर घर छोड़ना पड़ता है। निर्दय हुए बिना घर नहीं छूटता है। मेरे पीछे घर में सम्पत्ति रहेगी या नहीं रहेगी, यह ख्याल भी मत करो। घर के व्यक्तियों का पुण्य होगा, तो रहेगी। पुण्य नहीं होगा, तो सम्पत्ति नहीं रहेगी। लक्ष्मी पुण्य की दासी है। " भी स्वभाव वालों के प्रति उपेक्षा
उनके ये वाक्य भी सत्य हैं- "जो व्रत लेने वाले नहीं हैं, उनको हम नहीं कहते हैं। इसमें हमारा धन व्यर्थ में जाता है। ऐसों से हम नहीं बोलते।" व्रती की वीर से तुलना करते हुए पूज्यश्री कहते थे - " डरपोक आदमी, हरिण और गाँव की चिड़िया अपना स्थान छोड़कर बाहर नहीं जाते हैं । वीर व्यक्ति अपना स्थान छोड़कर बाहर जाता है।" वाहन में बैठनेवाले साधुओं को इशारा
satar बनकर भी रेलगाड़ी आदि का मोह नहीं छोड़ते थे, उनके बारे में विनोदपूर्ण भाषा में आचार्य महाराज कहते थे- "हम तो दरिद्र साधु हैं। हमें पैदल गमन किए सिवाय साध्य नहीं है। इसके सिवाय गत्यंतर नहीं है। रेल में जाने वालों को तो विद्या सिद्ध है । वे क्षण भर में यहाँ से वहाँ चले जाते हैं। अन्य धर्म के साधु भी तो रेल में नहीं बैठते और पैदल चलते हैं किन्तु यहाँ के साधु वाहन का उपयोग करते हैं, उनको क्या कहना ?" लोकोत्तर मनोभाव और वैराग्य
आचार्यश्री का हृदय लोकोत्तर था । उनकी मुद्रा क्षणभर में भी गम्भीर बन जाती थी। उनकी परिणति में विकार नहीं रहता था। एक समय मुनिं वर्धमान स्वामी ने महाराज के पास अपनी प्रार्थना भिजवायी - "महाराज ! मैं तो बानबे वर्ष से अधिक का हो गया। आपके दर्शनों की बड़ी इच्छा है। क्या करूँ ?" इस पर महाराज ने कहा- “हमारा वर्धमानसागर का क्या सम्बन्ध ? गृहस्थावस्था में वह हमारा बड़ा भाई रहा है, सो इसमें क्या ? हम तो सब कुछ त्याग कर चुके हैं। पंच परावर्तन रूप संसार अनादिकाल से घूमे हैं। उसमें सभी जीव हमारे भाई-बन्धु रह चुके हैं। ऐसी स्थिति में किस-किस को भाई, बहिन, माता, पिता मानना। हमको तो सभी जीव
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