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चारित्र चक्रवर्ती
उन्होंने ७ वर्ष पर्यन्त निद्रा - विजय तप का अभ्यास किया था । वे जमीन पर लेटते नहीं थे । वे एक ऐसी गुफा में रहते थे जिसमें बैठने और खड़े रहने के सिवाय लेटने का स्थान नहीं था। उनका आहार भी अत्यंत अल्प केवल चावल था । "
महाराज ने यह भी कहा - " पहले हम भी अष्टमी और चतुर्दशी को निद्रा नहीं लेते थे । "
महाराज की दृष्टि बड़ी मार्मिक और लोकोत्तर रही है। जिस दृष्टि से जगत् बाह्य पदार्थों को देखता है, उससे विलक्षण उनकी दृष्टि थी। भगवान् बाहुबली के अपूर्व सौन्दर्य तथा महत्ता को विधर्मी भी स्वीकार करते हुए उन देवाधिदेव को शतशः प्रणाम करते हैं । बाहुबली स्वामी के विषय में आलौकिक दृष्टि
जब हमने पूछा- “महाराज गोम्मटेश्वर की मूर्ति का आपने दर्शन किया है उस सम्बन्ध में आपके अंतरंग में उत्पन्न उज्ज्वल भावों को जानने की बड़ी इच्छा है।"
उस समय महाराज ने जो उत्तर दिया था उसे सुनकर हम चकित हो गये । उन्होंने कहा था- "बाहुबली स्वामी की मूर्ति बड़ी है । यह जिनबिम्ब हमें अन्य मूर्तियों के समान ही लगी। हम तो जिनेन्द्र के गुणों का चिन्तवन करते हैं, इसलिए बड़ी मूर्ति और छोटी मूर्ति में क्या भेद है ?” इससे आचार्य महाराज की मार्मिक दृष्टि का स्पष्ट बोध होता है। प्रत्येक बात में आचार्य महाराज की लोकोत्तरता मिलती है।
इसके अनंतर हमें सन् १९५२ में पुन: लोणंद आकर पर्यूषण पर्व में महाराज के पुण्य चरणों में रहने का सौभाग्य मिला। वहाँ प्रतिदिन शास्त्र पढ़ता था । उस समय बीच-बीच में मार्मिक प्रश्नों द्वारा अनेक सुन्दर समाधानों से आचार्य महाराज श्रोतृमंडल को कृतार्थ करते थे। उस समय महाराज से उनके व्यक्तिगत अनुभव की अनेक बातें सुनने में आती थी । कषाय की तलवार अलग करो
एक दिन लोणंद के नवीन मंदिर - निर्माण के समय कुछ विवाद की बात उठी । उस समय समन्वय का मार्ग सुझाते हुए महाराज ने कहा था- “यदि कषाय की तलवार दूर कर बात करो तो तुम्हें ठीक-ठीक बात का पता चल जावेगा । "
कितनी सत्य बात है। क्रोध, मान, माया, लोभ आदि के कारण ही हम सत्य का दर्शन नहीं कर पाते और व्यर्थ के विवाद में फँसे - फँसे बकवाद करते हैं।
वहाँ मुनि मिसागर महाराज ने सत्रह उपवास किए थे, इसलिए आचार्य महाराज उनके विषय में विशेष ध्यान रखते थे । एक दिन वे शास्त्र सुन रहे थे, किन्तु आचार्य महाराज ने उनकी शरीर स्थिति का ध्यान रखकर उन्हें विश्राम के हेतु उठवाया था। इससे उनकी कुशल दृष्टि और करुणा भाव स्पष्ट होता है।
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