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चारित्र चक्रवर्ती "नवधा-भक्ति अभिमान-पोषण के हेतु नहीं है। वह धर्मरक्षण के लिए है। उससे जैनी की परीक्षा होती है। अन्य लोग धोखा नहीं दे सकते हैं।" क्षुल्लक की चर्चा
क्षुल्लक के संबंध में महाराज ने कहा -“वह चार पाँच घर से भोजन माँग कर ला सकता है और एक घर में बैठकर वहाँ से जल माँग कर भोजन कर सकता है। वह चारचार हाथ लम्बे दो वस्त्र रखे, दो लंगोट रखे। यदि माँगकर भोजन नहीं करता है, तो दो रूमाल रखना नहीं चाहिए? बर्तन भी न रखे। बर्तन रखता है, तो रूमाल भी रखना चाहिये। क्षुल्लक को समुदाय रूप से अर्घ देना चाहिए। क्षुल्लक की प्रदक्षिणा नहीं करना चाहिए। पाद-प्रक्षालन आवश्यक नहीं है। गंधोदक नहीं लेना चाहिए। जो वर्ग जिसके पास श्रावक के अणुव्रत नहीं है, ऐसे व्रतविहीन(असंयमी) व्यक्ति के पाँव धोकर उस जल को गंधोदक मानकर मस्तक पर लगा रहा है, वह सम्यक्पथ से पूर्णतया शून्य है।" चातुर्मास
पहले चातुर्मास श्रावक तथा सप्तम प्रतिमाधारी भी किया करते थे। अतः हमने महाराज से पूछा, “चातुर्मास के विषय में किस प्रतिमाधारी को आज्ञा है?"
महाराज ने कहा, “८ वी प्रतिमा से चातुर्मास करने की विधि है।" प्रतिमाधारियों को मार्गदर्शन
प्रतिमाधारियों के विषय में महाराज से यह ज्ञात हुआ कि “चौथी प्रतिमा तक ठंडा जल पीता है। सातवीं प्रतिमा तक स्नानादि व्यवहार में शीतल जल को काम में लाता है। सचित्त त्याग प्रतिमा में सचित्त भक्षण का त्याग है। व्रत प्रतिमा से छठवीं प्रतिमा पर्यन्त दो बार भोजन तथा अनेक बार जल लेगा। सातवीं प्रतिमा में एक बार भोजन, संध्या को केवल फलाहार लेवे। पाक्षिक श्रावक रात्रि में जल, तांबूल, औषधि ग्रहण करता है। प्रोषधोपवास व्रत में जघन्य से एकासना करे। चावल का पानी लेना आचाम्ल निर्विकृति है। सामायिक
एक बार एक सामायिक प्रतिमाधारी श्रावक को डाक्टर ने बिस्तर से उठने की मनाई कर दी थी। सामायिक के समय वे उठकर आसन पर बैठ कर सामायिक करते थे, इससे रोग बढ़ता था। यह देखकर मैंने आचार्य महाराज से पूछा, “महाराज ऐसी स्थिति में यह श्रावक क्या करे ?"
महाराज ने कहा, “रुग्ण होने पर लेट कर भी सावद्य- योग त्यागकर सामायिक की जा सकती है। बीमार आदमी बिस्तर पर भी सामायिक कर सकता है।"
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