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प्रकीर्णक
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का दिखता है, किन्तु इसमें हमें कोई महत्व की बात नहीं दिखती। तुम धर्म की प्रभावना करो, इससे हमें क्या है। हम तो चाहते हैं कि लोगों के प्रशंसा के शब्द तक हमारे कान पर नहीं आवें । हम निन्दक और वंदक, दोनों को एक समान मानते हैं। तुम अखबार छाप कर हमारी स्तुति करते हो, किन्तु हम तो अखबार देखते तक नहीं ।" उस समय महाराज के मुखमंडल पर अपूर्व वैराग्य था । उनके गुणगौरव समारंभ को देखकर सभी धार्मिक जनों
हर्ष का पारावार न था, किन्तु महाराज की मानसिक स्थिति वास्तव में विलक्षण थी। यथार्थ में वे लोकोत्तर महापुरुष थे। वास्तव में वे महात्मा और महायोगी थे । १२ जून का मार्मिक उपदेश
पुरुषार्थ का महत्व : आचार्य महाराज ने १२ जून, सन् १९५२ को हीरक जयंती के अवसर पर अपने मार्मिक भाषण में कहा था- ' - "धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये चार पुरुषार्थ हैं। इनमें मोक्ष श्रेष्ठ है। धर्म की आराधना द्वारा अर्थ, काम तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है, इसलिए धर्म पुरुषार्थ महत्त्व का है । "
जिनवाणी का अध्ययन : “आचार्य उमास्वामी ने 'सम्यग्दर्शन, ज्ञान तथा चारित्र को मोक्ष का मार्ग कहा है', केवल सम्यक्त्व के बाद ही मोक्ष नहीं होता है । जिनेन्द्र भगवान् की वाणी पर श्रद्धान करने से समयक्त्व होता है। जिनेन्द्र भगवान् की वाणी का एक वाक्य तक उस जीव का कल्याण करता है, तब संपूर्ण जिनागम का स्वाध्याय क्या नहीं करेगा ? इस पंचम काल में केवली भगवान् नहीं हैं, इस समय किसका अवलंबन किया जाय ? जिन भगवान् की वाणी के सिवाय अन्यत्र कल्याण नहीं है । जिनेन्द्र भगवान् की वाणी पूर्णतया सत्य है । "
भगवान् ने कहा है कि- “जिनेन्द्र का मन्दिर नहीं होगा, तो श्रावकों का धर्म भी नहीं रहेगा और श्रावकों के अभाव में मुनिधर्म कैसे रहेगा ? मुनिधर्म जब तक रहेगा, तब तक जिनधर्म रहेगा। इसी दृष्टि से धर्म के आधारस्तंभ जिनमंदिरों की पवित्रता के रक्षण निमित्त हमें प्रयत्न करना पड़ा था । यदि भगवान् का स्थान नहीं रहा, तो हम भी नहीं रहेंगे । हमें भगवान् की आज्ञा माननी चाहिए।"
"भगवान् की वाणी में लिखा है कि अभी जिनधर्म का लोप नहीं होगा। यह बात कभी झूठ नहीं होगी। अज्ञान के अंधकार में चलने वाले जीवों को शास्त्र अजीव होते हुए भी मोक्ष का मार्ग बताता है । जो बात आदिनाथ भगवान् ने कही थी, वही बात दूसरे तीर्थंकरों ने बतायी। कोड़ा कोड़ी सागरों पर्यन्त काल बीतने पर भी जिनेन्द्र की वाणी में कोई अन्तर नहीं पड़ा है, इसलिए महावीर भगवान् के मोक्ष जाने के २५०० वर्ष के भीतर कोई अन्तर नहीं हुआ है, इस बात पर दृढ़ श्रद्धा रखना चाहिए।"
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