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चारित्र चक्रवर्ती भगवान् का जप करें तथा एक-देश आत्मचिंतन करें।
जघन्य प्रोषधोपवास में छह रस रहित आहार लेना उत्कृष्ट है। बारामती में कुछ बम्बई की धार्मिक मण्डली ने आचार्यश्री से बम्बई की ओर विहार करने की प्रार्थना की थी। महाराज ने उसमें से एक पण्डित से व्रती बनने को कहा। बम्बई की परिस्थिति देख वे विचार में पड़ गए। तब महाराज ने कहा, "हम तुम्हें स्वर्ग ले जाते हैं, तो तुम सुनते नहीं हो, और तुम हमें व्यर्थ में बम्बई ले चलने को तैयार होते हो।" त्यागधर्म
नीरा में जैनमित्र के संपादक श्री मूलचन्द कापड़िया ने 'दिगम्बर जैन' का 'त्याग' विशेषांक पूज्यश्री को समर्पित किया। उनके साथ मुम्बई के प्रख्यात गुजराती दैनिक के संवाददाता भाई साखरचन्दजी घड़ियाल थे। उस समय आचार्य महाराज पूना के समीपस्थ नीरा स्टेशन के पास थोड़ी दूर एक कुटी में विराजमान थे। आचार्यश्री ने कापड़ियाजी से कहा, "तुमने त्यागधर्म अंक निकाला है, यह तो बताओ कि तुमने क्या त्याग किया है ? वे चुप हो गए।" निवासकाल
कुछ समय के बाद पूज्यश्री का आहार हुआ। पश्चात् आचार्य महाराज सामायिक को जा रहे थे। सम्पादकजी तथा संवाददाता महाशय महाराज की सेवा में आये। कापड़ियाजी ने पूछा-"महाराज,आप अभी यहाँ कब तक हैं ?"
महाराज ने कहा-"हमें नहीं मालूम। सामायिक तक तो यहाँ ही हैं। आगे का क्या निश्चय?"
जैनमित्र संपादक ने कहा-“महाराज! हमें अभी रेल से जाना है।" महाराज ने कहा-"तुमको इतनी जल्दी क्या है ?" उन्होंने कहा-“महाराज! अभी फुरसत नहीं है।"
महाराज ने पूछा-"फुरसत कब मिलेगी कापड़िया ! तुम इतने वृद्ध हो गए। अब कब फुरसत मिलेगी?"
इस प्रश्न का उत्तर वे क्या देंगे? परिग्रह की आराधना में निमग्न सारे संसार के समक्ष आचार्य देव का यह महान् प्रश्न है-“अब कब फुरसत मिलेगी?"
सचमुच में परिग्रह में फंसा हुआ जीव फुरसत नहीं मिलने की बात कहा करता है और एकाएक यमराज का गिरफ्तारी वारंट आ जाता है, तब इसे आत्म समर्पण कर देना पड़ता है। उस समय कहीं इसे फुरसत मिल पाती है।
महाराज ने बताया था-“एक व्यक्ति ने हमें आहार दिया। हम सामायिक को बैठ गए। सामायिक पूर्ण होने पर हमें यह खबर दी गई कि आपको आहार देने वाले व्यक्ति का
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