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चारित्र चक्रवर्ती जैन मन्दिर का ताला तोड़कर ८बजे रात को हरिजनों को मन्दिर में ले जाने का अधिकार किसने दिया था ? क्या उसके हाथों में कानून आ गया था। उसे केवल इतना ही
अधिकार था कि रोकने वालों पर दावा दायर करना, किन्तु मन्दिर का ताला तोड़कर घुसने का तरीका तो बहुत बड़ी ज्यादती थी।" हाईकोर्ट का निर्णय
इसके अनन्तर ही चीफ जस्टिस ने कहा, हम निर्णय घोषित करते हैं। उन्होंने जस्टिस गजेन्द्र गड़कर से पूछा“क्या आप फैसला बोलते हैं ?"
उन्होंने कहा, “आप ही बोलिए।
श्रीजस्टिसचागलाने फैसला आरम्भ किया,"बम्बई कानून का लक्ष्य हरिजनों को सवर्ण हिन्दुओं के समान मन्दिर प्रवेश का अधिकार देना है। जैनियों तथा हिन्दुओं में मौलिक बातों की भिन्नता है। उनके स्वतन्त्र अस्तित्व तथा उनके धर्म के सिद्धान्तों के अनुसार शासित होने के अधिकारों के विषय में कोई विवाद नहीं है, अतः हम एडवोकेट जनरल की यह बात अस्वीकार करते हैं कि कानून का ध्येय जैनों तथा हिन्दुओं के भेदों को मिटा देना है।" _ "दूसरी बात यह है कि यदि कोई हिन्दू इस कानून के बनने के पूर्व किसी जैन मंदिर में पूजा करने के अधिकार को सिद्ध कर सके, तो वही अधिकार हरिजन को भी प्राप्त हो सकेगा। अतः हमारी राय में प्रार्थियों का (petitioner's) यह कथन मान्य है कि जहाँ तक इस सोलापुर जिले के जैन मन्दिर का प्रश्न है, हरिजनों को उसमें प्रविष्ट होने का कोई अधिकार नहीं है, यदि हिन्दुओं ने यह अधिकार कानून, रिवाज या परम्परा के द्वारा सिद्ध नहीं किया है।" __ “कलेक्टर का कार्य भी कानून के अनुसार ठीक नहीं था। कानून के नियम के नियम नं. ४ के अनुसार कलेक्टर को इस बात का संतोष हो जाय कि इस अकलूज के जैन मंदिर में हिन्दुओं को कानून, रिवाज या परम्परा के अनुसार अधिकार था, तो उसे यह करना उचित होगा कि उस जैन पर कार्यवाही करे जो इस कानून के द्वारा प्रदत्त अधिकार में बाधा डालता है। किन्तु नियम नं. ४ के सिवाय कलेक्टर को ताला तोड़ने का अथवा हरिजनों को मन्दिर में प्रविष्ट कराने में सहायता देने का अधिकार नहीं था।" निर्णय के पश्चात्
इस निर्णय को सुनते ही सबको आश्चर्य हुआ। कानून के विशेषज्ञ चकित हुए कि जहाँ मामले में पराजय की स्थिति थी, वहाँ धर्मपक्ष की पूर्णतया विजय हो गई। उस समय इस प्रसंग में जिसको जितना अधिक श्रम उठाना पड़ रहा था, उसके आनन्द की
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