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प्रभावना
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प्रतिष्ठा ग्रंथों में क्यों बताया है ? अतएव आगम के अनुसार ही प्रवृत्ति करना चाहिए ।"
आगम प्रमाण
आगम की प्रमाणिकता पर प्रकाश डालते हुए आचार्य महाराज ने कहा था, " जगत् में लोग सरकारी मुहर (stamp) को देखकर नोटों तथा अन्य कागजातों की प्रामाणिकता स्वीकार करते हैं, भले ही वह लेख तीव्र रागी, द्वेषी व्यक्ति द्वारा तैयार किया गया हो, क्योंकि वह राजमुद्रा से अंकित है, तब फिर सर्वज्ञ वीतराग तीर्थंकर भगवान् की वाणी वीतराग आचार्यों द्वारा परंपरा से प्राप्त हुई तथा स्याद्वाद मुद्रा से अंकित होती हुई क्यों न मान्य और आराध्य होगी ?"
अतिशय क्षेत्र महावीरजी
अलवर राज्य में वीतराग-शासन की प्रभावना के उपरान्त विहार करता हुआ संघ अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी आ गया। यह है तो अतिशय क्षेत्र, किन्तु इसकी भक्ति उत्तरभारत के जैनियों द्वारा खूब होती है। निर्वाणस्थलों के प्रति जनसाधारण की भक्ति का स्रोत कुछ कम दिखता है, किन्तु महावीरजी क्षेत्र के प्रति अवर्णनीय आकर्षण और श्रद्धा देखी जाती है। लाखों अजैन भी महावीरजी की मूर्ति के दर्शन करते हैं।
गूजर जाति के अजैनों में महावीरप्रभु की भक्ति जितनी है, उतनी अन्य के प्रति नहीं है। उनके दुःख में, सुख में, आराध्य महावीर भगवान् ही हैं। चैत्र सुदी के अंत में जो प्रतिवर्ष मेला भरता है, उसमें लाखों अजैन आकर महावीर प्रभु की भक्ति करते हैं तथा सफल मनोरथ हुआ करते हैं। हमने महावीरजी जाकर कई ग्रामीणों से पता चलाया तो ज्ञात हुआ कि भक्ति करने से उनकी कामना पूर्ण होती है। इस क्षेत्र की इसी शताब्दी से प्रसिद्धि प्रारंभ हुई है। इसका इतिहास भक्ति को जगाने वाला है।
इतिहास
महावीर स्वामी की प्रतिमा पद्मासन लगभग डेढ़ हाथ की मटीले वर्ण की चांदनपुर ग्राम एक टीले के भीतर दबी थी। एक गाय जब उस टीले के वहाँ जावे, तब उसके स्तन से दूध वहाँ धीरे-धीरे टपक जाता था। अतः जब वह ग्वाले के घर आवे तब दूध नहीं देती थी ।
इस कारण चिंतित हो ग्वाले ने पता चलाया, तो टीले पर दूध के अपने-आप झर जाने का अपूर्व दृश्य देखा। उसने धीरे-धीरे टीले को खोदा तो वहाँ महावीर भगवान् की मूर्ति का दर्शन हुआ ।
प्रतिमाजी टीले के बाहर निकाली गई। उस ग्वाला ने प्रभु की भक्ति भाव से पूजा की, गाँव वालों ने दर्शन किए। उनका दुःख दूर होने लगा। गाँव में सबके दिन सुधरने लगे, इससे भक्ति बढ़ चली। श्रावकों को जब पता चला कि जयपुर के पास पाटोदा ग्राम में चार मील पर महावीर भगवान् की दिगंबर प्रतिमा प्राप्त हुई है जो कि बहुत चमत्कारपूर्ण
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