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चारित्र चक्रवर्ती जो यह सोचते थे मंदिर में कोई भी आवे, उसमें क्या हानि है, उसके विषय में महाराज का कथन था, “मंदिर जैनों के आत्म-धर्म-साधन का स्थान है। वह अजैनों के आत्मधर्म साधन का स्थान नहीं है, इसलिए उनको वहाँ आने का प्रयोजन ही नहीं है।"
महाराज ने एक दिन कहा था, “यदि वह धर्मसंकट दूर न हुआ, तो इस जन्म में हम अन्नग्रहण न करेंगे। हमारा इसी तरह शरीरान्त हो जायगा।"
मैंने कहा, “महाराज ! यदि आप इस जन्म में अन्न-ग्रहण न करेंगे, तो दूसरे जन्म में भी अपको अन्न-ग्रहण नहीं होगा, कारण महाव्रती जीव देवपर्याय को प्राप्त करता है, वहाँ अन्नाहार नहीं है।"
जैनसमाज में अन्नत्याग से भीषण चिंता का बादल छा गया। सभी लोग अपनाअपना प्रयत्न करते थे। अधिकारियों से मिलते थे, किन्तु कार्य फलप्रद नहीं हो रहा था। जब हमने डा. राजेन्द्रप्रसादजी, अध्यक्ष, भारतीय गणतंत्र शासन को तार देकर परिस्थिति स्पष्ट की, तब डाक्टर साहब ने हमें इस प्रकार उत्तर दिया था।
केम्प, पिलानी (जयपुर राज्य), ३० अगस्त १९४८ प्रिय सुमेरुचंद्रजी, आपका तार मिला, किन्तु अस्वस्थ होने के कारण मैं उस पर पहले विचार न कर सका। मैंने उसे राजकीय मन्त्रिमंडल के पास उचित जाँच तथा कार्यवाही निमित्त भेज दिया है।
व - आपका विश्वसनीय राजेन्द्रप्रसाद इसके अनंतर २६ अक्टूबर, सन् १९४८ में डाक्टर राजेन्द्रप्रसादजी जबलपुर में पधारे थे। उस समय हम राजा गोकुलदास के महल में उनसे मिले थे। हमारे साथ हमारा अनुज चि. अभिनंदनकुमार दिवाकर (एडवोकेट) भी था। राष्ट्रपति से भेंट के लिए हमने २८ अक्टूबर को जबलपुर के महाकौशल कांग्रेस के अध्यक्ष श्री गोविन्ददासजी के पते पर जवाबी तार दिया था। किन्तु कांग्रेस को कलंकित करने वाले कलुषित लोगों के कर में
Camp : Pilani, Jaipur State; August 30, 1948. Dear Mr. Sumerchand, I received your telegram but could not attend to it earlier on account of indisposition. I forwarded it for necessary enquiry and action to the state Ministry.
Yours sincerely,
(Sd) Rajendra Prasad Shri Sumerchand Diwaker, Hony. Secretary, All India Jain Political Rights Preservation Commit
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