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चारित्र चक्रवर्ती
सकता है। उनसे यह भी ज्ञात हुआ था कि चार-पाँच सप्ताह में निर्णय हो सकता है। उन्होंने सरकारी वकील होने के कारण अपना अभिमत नहीं बताया था।
इस प्रकार विविध साधनों के द्वारा भारतीय संविधान के नियमों को अपने अनुकूल ज्ञात कर हमने जैन प्रमुख लोगों के समक्ष कानूनी कार्यवाही करने की सलाह दी। इस संबंध में दिगंबर जैन महासभा की विशेष बैठक होकर एक उपसमिति का निर्माण हुआ तथा कानूनी कार्यवाही करने का निश्चय भी हो गया ।
अद्भुत काण्ड
इसके अनंतर एक अद्भुत घटना हो गई । २८ नवम्बर, सन् १९५० को अकलूज पहुँचकर सोलापुर के कलेक्टर ने रात्रि के समय दि. जैन मंदिर का ताला तुड़वाकर उसके भीतर मेहतरों तथा चमारों आदि का प्रवेश कराया तथा जिन जैन बन्धुओं ने इसके विरुद्ध आवाज उठाई उनको गिरफ्तार कर लिया। इससे सारे समाज में सनसनी फैल गयी। जबरदस्ती मंदिर प्रवेश
जबरदस्ती मंदिर में प्रवेश कराना तो गांधीजी को भी प्रिय न था । उन्होंने १६३२ में २३ दिसंबर को पूना के यरवदा जेल से श्री अमृतलाल सूरजमल जवेरी, मंत्री, जैन युवक सभा, पाटनको तार भेजा था :
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आपका तार मिला मुझे इस विषय में जरा भी संदेह नहीं है कि जैन मंदिर में जबरदस्ती किसी को ले जाना योग्य नहीं है। विशेष कर ऐसे लोगों को ले जाना कदापि उचित नहीं है, जो उस संप्रदाय के नहीं है, जिनके लिए यह मंदिर बनाया ही नहीं गया है।'
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गांधीजी के इस तार का कलेक्टर की कानूनी दृष्टि में कोई महत्व नहीं रहा। इससे उन लोगों का भ्रम दूर हुआ जो पं. जवाहरलाल नेहरू के इस पत्र को पाकर कि" जैनधर्म, हिन्दूधर्म का भेद नहीं है," इससे आचार्य महाराज को अन्नग्रहण कराने को प्रेरणा कर रहे थे।
२८ दिसम्बर सन् १९५० को बंबई में जैन महासभा की विशेष बैठक में ११ व्यक्तियों की विशेष उपसमिति इस संबंध में कार्यनिमित्त बनाई गई ।
उस उपसमिति में कानूनी सलाह प्राप्त करने के अनंतर कानूनी कार्यवाही करने का
1. Poona Dated A.M. 23 September, 1932
"Amritlal Surajmal Javeri, Secretary, ain Yuvak Sabha, Patan. Your wire. I have no doubt that forcible entry into Jain temples by any body is unwarranted and certainly by those who do not belong to those for whom temple built".
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