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प्रभावना
क्या मुनि को केशलोंच में कष्ट व शीतादि का अनुभव होता है ?
सन् १६४३ के सितम्बर के अन्तिम सप्ताह में आचार्य महाराज शेडवाल में विराजमान थे। मैं वहाँ उनके चरणों में दर्शनार्थ पहुंचा था। वहाँ मुनिराज धर्मसागरजी का केशलोंच हो रहा था ।
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उस समय आचार्य महाराज ने मुझे पास में बुलाकर कहा था, " देखो ! यह केशलोंच की क्रिया बहुत कठिन होती है। इसकी कठिनता भी तब तक ही अनुभव में आती है, जब तक शरीर में एकत्वबुद्धि रहती है । '
मैंने पूछा, “ महाराज ! भेदबुद्धि होने से कष्ट कैसे दूर रहेगा ?"
महाराज ने कहा, " चूल्हे में लकड़ी लगाने से तुम्हारा शरीर जलता है क्या ?" मैंने कहा, "नहीं जलता है । "
महाराज, " इसी प्रकार शरीर को पीड़ा होने पर आत्मा का क्या बिगड़ता है ?"
महाराज ने एक बात बताई थी कि एक क्षुल्लक ने ऐलक व्रत धारण किया था, किन्तु केशलोंच की कठिनता सह्य न होने के कारण ऐलक पद को छोड़कर पुनः क्षुल्लक पद at धारण किया था ।
मुनि को शीतादि का अनुभव होता है ?
एक बार भयंकर शीत पड़ रही थी व चित्त को कँपा देने वाली हवा चल रही थी, तब मैंने पूछा था, "महाराज ! शीत ऋतु में, ग्रीष्म ऋतु, दिगम्बर साधु को वेदना होती है या नहीं ? क्या ठंड या गर्मी का अनुभव नहीं होता है ?"
महाराज ने कहा, " शीत का अनुभव होता है, उष्णता का अनुभव होता है, किन्तु साधु दुःखी नहीं होता है। शांत भाव से वह कष्ट सहन करता है । "
गुड़गाँव से विहार करता हुआ संघ फर्रुखनगर पहुँचा । वहाँ संघ पन्द्रह दिन ठहरा । पूर्व प्रभावना हुई। श्रीजी का विहार कराया गया था। पौष सुदी चौथ को संघ रिवाड़ी आया, वहाँ १८ दिन तक संघ अलवर राज्य में रहा ।
अलवर
पश्चात् विहार करते हुए आचार्य संघ अलवर शहर में आया। राज्य की ओर से अच्छी व्यवस्था की गई थी । यहाँ बहुत धर्म प्रभावना हुई। उच्च राज- कर्मचारी, श्रीमान्धीमान् महाराज के पास आकर चर्चा करते थे और शंका समाधान से सन्तुष्ट होकर जाते थे। फागुन सुदी दशमी को अलवर में भगवान् को रथ में विराजमान कर नगर विहार हुआ था । महत्वपूर्ण शंका समाधान
अलवर में एक ब्राह्मण प्रोफेसर महाशय आचार्यश्री के पास भक्तिपूर्वक आए और
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