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तीर्थाटन
१९६ महाराज ने कहा, “हमारा मन सदा चंगा रहता है। हम लोग गांजा नहीं पीते हैं।" यह सुनते ही वह चकित हुआ । उसने कहा, “महाराज ! सब साधु पीते हैं, आप क्यों नहीं पीते ?" ___ महाराज ने उस भोले प्राणी को समझाया, “ये मादक पदार्थ हैं, इनके सेवन से जीव के भावों में मलिनता उत्पन्न होती है, इससे बड़ा पाप होता है, सच्चे साधु की बात ही तो दूसरी है, किसी भी मनुष्य को गाँजा आदि मादक वस्तुओं को नहीं लेना चाहिए।"
गाँजा, भांग, चरस, मदिरा सब मादक द्रव्य की अपेक्षा भाई बन्धु ही हैं। यह बात गृहस्थ के ध्यान में आ गई। फिर भी गुरुदेव की भक्ति करनी थी, अतः प्रेम वश बोला"महाराज! थोड़ी मिठाई ला देता हूँ। उसे ग्रहण कर मुझे कृतार्थ कीजिए।"
महाराज ने कहा, “साधु के भोजन का नियम कठिन होता है, वह जैसा तैसा भोजन नहीं करता है।" उसके प्रेम को देखकर महाराज ने सोचा यह भद्र जीव प्रतीत होता है, अतः उसे उपदेश दिया। उसकी स्त्री ने जीवन भर के लिए अनछने जल का त्यागकर दिया और पुरूष ने परस्त्री त्याग व्रत लिया। __ आज पढ़े लिखे लोग अनछना पानी पीने में अकल्याण नहीं देखते हैं; किन्तु धर्म के सिवाय विज्ञान का भी समर्थन छने जल को प्राप्त है। अनछने जल में चलते फिरते अगणित त्रस-जीवसूक्ष्मदर्शी यंत्र (Mobile) से दिखते हैं, उनकी रक्षा के हेतु छना जल पीना आवश्यक है। छनेजल के विषय में
मनुस्मृति में जो हिन्दू समाज का मान्य ग्रंथ है लिखा है
दृष्टि पूतं न्यसेत्पादं, वस्त्रपूतं पिबेजलम (देखकर पांव रखे और छानकर पानी पिए)। कहावत है- गुरु कीजे जान पानी पीजे छान । अगलित जल में बहुत छोटेछोटे कीड़े पेट में चले जाते हैं जो भयंकर रोगों को उत्पन्न कर देते हैं। प्राचीन भारत में छने जलका आम रिवाज रहा प्रतीत होता हैं इसी कारण न्यायशास्त्र में घट के साथ पट का भी उदाहरण दिया जाता है। शब्द साम्य की दृष्टि से घट के साथ पट का भी मेल हो सकता है, हमें प्रतीत होता है कि घट और पट की समीपता के कारण ही न्याय शास्त्र में अन्योन्याभाव भाव आदि के उदाहरण में घटः पटोन कहा जाता है।
सन् १९५० में हम राणा प्रताप के तेजस्वी जीवन से सम्बन्धित चितौड़गढ़ के मुख्य द्वार पर पहुंचे तो वहां एक घट को वस्त्र सहित देख मन में शंका हुई कि यहां घट पट का सम्बन्ध कैसे आ गया? तब हमें बताया गया कि यहां लोग प्रायः पानी छानकर पीते हैं। जैन संस्कृति की करुणा मूलक प्रवृत्ति का यहा विशिष्ट सूचक भी है, किन्तु इस कार्य में बड़े बड़े विद्वान् तक शिथिलता दिखाते हैं।
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