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चारित्र चक्रवर्ती उल्लेख किया है।
इस देवनिर्मित स्तूप के विषय में यशस्तिलकचम्पू की कथा विशेष महत्वपूर्ण है। उसमें बताया है, कि मथुरा नरेश की महादेवी उर्मिला रानी ने अष्टाह्निका महापर्व के आगमन पर सदा की भाँति मथुरा में जिनधर्म के रथ निकाले जाने में सपत्नी बुद्धदासी द्वारा विघ्न का जाल रचा देखा, तब चिंतित हो महारानी ने सोमदत्ताचार्य के समीप, जाकर कहा कि भगवन् ! मैंने प्रतिज्ञा की है यदि आज से दो, तीन दिन में होने वाले अष्टाह्रिका की पूजा में पूर्व क्रम के अनुसार जिन भगवान् की पूजा के हेतु मेरा रथ निकलेगा, तो मेरे शरीर स्थिति में कारण रूप वस्तुओं के प्रति मेरे मन में अभिलाषा है अर्थात् तब मैं अन्न-जल लूँगी, अन्यथा मेरी अभिलाषा नहीं है। वज्रकुमार द्वारा धर्मप्रभावना का नगर
उस समय संघ में उपस्थित श्री वज्रकुमार मुनिनाथ ने कहा, “माता, आप चिन्ता न करो, हम सरीखे आपके बालक के होते हुए अर्हत् भगवान् की पूजा में विघ्न नहीं आयेगा।" इसके पश्चात् वज्रकुमार मुनिराज द्रुतगति से विद्याधरपुर पहुंचे और भास्कर देव आदि को अपने आगमन का कारण मथुरा में जिनेन्द्र के रथ के विहार कराने की आवश्यकता बतायी।
पश्चात् दैविक चमत्कार तथा वैभव के साथ मथुरा में भगवान् जिनेन्द्र के रथ का विहार हुआ और उनके निमित्त से मथुरा में अर्हत् भगवान् की प्रतिमायुक्त एक स्तूप की स्थापना हुई 'मथुरायां चक्र चरणं परिभ्रभय्यार्हत् प्रतिबिम्बांकितमेकं स्तूपं तत्रातिष्ठपत् ।' अतः आज भी उस तीर्थ की देवनिर्मित के नाम से ख्याति है। 'अतएवाद्यापि तत्तीर्थं देवनिर्मिताख्यया प्रथते।' (यश. ति. पृ. ३१४-३१५, अध्याय ६, कल्प १८।) इसी कारण प्रभावनांग में वज्रकुमार का नाम समंतभद्र स्वामी ने अपने रत्नकरंडश्रावकाचार में लिखा है। इस वर्णन में आगत अद्यापि' शब्द से विदित होता है कि सोमदेव सूरि के समय पर दसवीं सदी में वह स्तूप विद्यमान था। इस प्रकार ऐतिहासिक दृष्टि से मथुरा की सामग्री का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है और उससे जैनधर्म की प्राचीनता पर महान् प्रकाश पड़ता है। रेवती रानी मथुरा की ही थी
अमूढदृष्टि अंग में प्रसिद्ध रानी रेवती मथुरा के नरेश महाराज वरुण की रानी थी। मथुरा के आसपास के टीलों में और भी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक सामग्री छिपी हुई है। इससे मथुरा को जैन संस्कृति का महान् केन्द्र मानना पड़ता है, किन्तु जम्बूस्वामी की निर्वाण भूमि माने जाने का कोई भी आधार नहीं मिला। चौरासी मथुरा में जंबूस्वामी के चरणों की पूजा में कोई बाधा नहीं है, मुक्तिलाभ करने-कराने वाली आत्माओं के चरणों की स्थापना दूसरी जगह
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