________________
प्रभावना
२४६ सीमंधरा' उच्चारण करते थे। उनकी स्थिरता, निस्पृहता, वैराग्यभाव आदि देखकर आदमी चकित हो जाता था। ऐसी स्थिति में दिखने लगता है कि इस आत्मा में भेदविज्ञान का कितना उज्ज्वल प्रकाश है ? मूर्छा आने पर चुप हो जाते, अन्यथा अरिहंता सीमंधरा' शब्द कुछ देर तक सुनाई देता था। __ अब प्रभु का नाम लेते-लेते प्राणों ने ऊर्ध्वलोक को प्रयाण कर दिया। देखा तो ज्ञात हुआ कि महाराज ने स्वर्गारोहण कर दिया। ऐसी विशुद्ध आत्मा का दाह संस्कार बस्ती के बाहर एक योग्य-स्थल पर किया गया था। इस कारण मुरैना अनंतकीर्ति मुनिराज की समाधि भूमि क्षेत्र के रूप में मान्य है।
पूज्य पं. गोपालदासजी वरैया के दिवंगत होने के बाद भी कुछ समय पर्यंत विद्यालय का गौरव वर्धमान रहा। पं. वंशीधरजी न्यायालंकार, पं. देवकीनंदनजी सिद्धांतशास्त्री, पं. माणिकचन्दजी न्यायाचार्य सदृश उद्भट विद्वान् शिक्षक थे।
उन दिनों में हमें भी वहाँ दो वर्ष विद्याभ्यास करने का सौभाग्य मिला था।
आचार्यश्री के मुरैना पधारने पर शास्त्रीय परिषद् का उत्सव क्षुल्लक ज्ञानसागर जी के नेतृत्व में हुआ। विद्यालय का अधिवेशन ग्वालियर राज्य के शिक्षा विभाग के अधिकारी राजबहादुर मुले की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। श्रीजी को विराजमान कर रथ निकाला गया था। राज्य के सुप्रबंध के कारण किसी प्रकार का विघ्न नहीं आया। समाज के लगभग तीन हजार व्यक्ति रथोत्सव में थे। अजमेर के प्रख्यात दानी भद्रपरिणामी और महान् धर्मभक्त रायबहादुर सेठ टीकमचन्द जी सोनी भी मुरैना पधारे थे।
पन्द्रह दिन पर्यन्त मुरैना में सम्यक्चारित्र रूप अमृत की वर्षा की। उस समय विद्यालय के आचार्य पं. मक्खनलालजी शास्त्री न्यायालंकार थे। आचार्य महाराज शास्त्री विद्वत्ता, प्रगाढ़ श्रद्धा आदि की बहुत प्रशंसा करते थे। आचार्य संघ ने माघ सुदी एकम को धौलपुर के लिए प्रस्थान किया। धौलपुर की जनता ने संघ का बड़े आदर भाव से स्वागत किया। इस ओर कभी दिगम्बर साधु का विहार किसी ने न देखा और न सुना। संघ के पहुंचने से जैनधर्म की बहुत प्रभावना हुई। राजाखेड़ा-कांड ___ यहाँ से संघ चला और ६ फरवरी सन् १९३० को राजाखेड़ा पहुंच गया। यहाँ भी धार्मिक समाज ने खूब स्वागत किया। जिनमंदिर के समीपवर्ती भवन में आचार्य महाराज सप्तर्षि शिष्यों सहित ठहरे थे। उसके सामने के चबूतरे पर सब त्यागी लोग ध्यान, अध्ययन, सामायिक करते थे। एक सभा मंडप पास में बनाया गया था, जहाँ तीन दिन तक धर्म प्रभावना हुई। कोई विघ्न का लेश भी न था।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org