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प्रभावना
२२२ जब संघ का एक स्थान से दूसरे स्थान पर विहार होता था, तब मध्यवर्ती ग्रामों के हजारों जैन भाई-बहिन गुरुदेव के प्रति बड़ी भक्ति प्रदर्शित करते थे। अजैन लोग इन महात्माओं को अपने गुरु से भी बढ़कर पूजनीय मान बड़ी श्रद्धा से प्रणाम करते थे और हिंसा आदि पापों का त्याग करते थे। कटंगी व जबेरा __ कटंगी पहुंचने पर समाज ने बड़ी भक्ति प्रदर्शित की। लोगों के भाग्योदय से संघ ने चार दिन वहाँ धर्मामृत वर्षा की। आगे जब संघ सिंगरामपुर पहुंचा तो वहाँ विमानोत्सव किया गया।
जबेरा में जब संघ के चरण पड़े, तब वहाँ की समाज का वैमनस्य दूर होकर ऐक्य स्थापन हो गया। हाईकोर्ट भी जिस काम को न कर सके, वह काम इन मुनिराज के दर्शन मात्र से होता था। उच्च न्यायालय शासन-सत्ता के बल पर अपने आर्डर-आज्ञा को लोगों पर लागू करता है, हृदय की कषायों को धोना उसकी शक्ति के बाहर की बात है, किन्तु आचार्य शांतिसागर महाराज के प्रसाद से वैमनस्य दूर होकर सौमनस्य का निर्माण होता था। हृदय निर्मल हो जाता था। वैर-विरोध दूर होकर एक अपूर्व स्नेहमयी सृष्टि हो जाती थी। तपश्चर्या का प्रभाव बड़ा विचित्र होता है। जबेरा समाज ने अपने में ऐक्य स्थापन करके बड़े उमंग के साथ श्रीजी का जल विहार उत्सव किया। जिस ग्राम, नगर में आचार्य संघ का पदार्पण होता था वहाँ धर्म का उपवन एकदम हरा-भरा हो जाता था। सब लोग और कार्यों को गौण कर धर्मनीति के संचय में समुद्यत हो जाते थे। गाँव के बड़े-बड़े प्रतिष्ठित ठाकुरों आदि ने हिंसादि के त्याग का नियम लिया था। __ यहाँ से चलकर संघ नोहटा गाँव पहुंचा। यहाँ का मन्दिर जीर्ण स्थिति में था। इस गाँव के बाहर एक प्राचीन मनोज्ञ प्रतिमाजी अष्टप्रातिहार्य अविनय की स्थिति में पड़ी थी। आचार्यश्री के उपदेशानुसार वह मूर्ति मंदिरजी में लायी गयी। जिन भगवान् की मूर्ति जिनेन्द्र समान पूज्य है। कवि बनारसीदास लिखते हैं -
जाकी भगति प्रभाव सों कीनों ग्रंथ निवाहि।
जिन प्रतिमा जिन सारखी, नमें बनारसि ताहि।। जिन प्रतिमा के विषय में महाकवि का कथन बहुत सुन्दर है -
जाके मुख दरस सों भगति के नैननि कों, थिरता की बानी चढ़ी चंचलता बिनसी। मुद्रा देख केवली की मुद्रा यादि आवे जहाँ, जाके आगे इन्द्र की विभूति दिखे तिनसी॥
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