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प्रभावना
२०८ के भाई सेठ तुलारामजी सन् १९५१ के भादों के बाद आचार्य महाराज की सेवा में बारामती आये थे। वे महाराज की सेवा में सपरिवार कुछ दिन ठहरे थे। वे सभी भाई कोट्याधीश थे। महाराज ने उनसे कहा था, “तुमने अभी जो धन पाया, वह पूर्व पुण्य से प्राप्त किया है। पुरुषार्थ से इतना धन नहीं मिला है। अब आगे भी ऐसा धन प्राप्त करने के लिए प्रयत्न क्यों नहीं करते?" महाराज की बात ऐसी मधुर, मार्मिक तथा कल्याणप्रद रहा करती थी।
इसके बाद संघ सलीमनाबाद आया। प्राचीनकाल में यह स्थान दिगम्बर जैन संस्कृति का बड़ा भारी केन्द्र रहा हैं, क्योंकि यहाँ के जंगल में बहुत प्रमाण में जैनमूर्तियां प्राप्त होती हैं। यहां अच्छा मंदिर है। लगभग दस घर जैनियों के थे। सिहोरा
वहाँ से चलकर संघ सिहोरां आया। सिहोरा के पार्श्व में तीन मील दूरी पर एक गांव है, वहाँ के श्रावकों ने संघ से धर्मप्रभावना की प्रार्थना की, अतः आचार्य महाराज ने पार्श्ववती ग्राम के लिए पार्श्वकीर्तिजी को दो दिन के लिए जाने की आज्ञा दी थी, पश्चात् वे संघ में सम्मिलित हो गये थे। जब संघ आगे बढ़ा, तब भीषण वर्षा के सर्वचिह्न दिखने लगे। उससे सब गृहस्थों को बड़ी चिन्ता होने लगी कि वर्षा हो जाने से परिवार के बाल-बच्चों को बड़ा त्रास होगा, सर्दी भी भीषण हो जायगी। यह देख आचार्यश्री ने करुणाभाव से बाल-बच्चों वाले श्रावकों को साथ में न ले जाने को कहा, किन्तु उनके हृदय में गुरु-चरणों के प्रति भक्ति थी, उनका साथ छोड़ने को जी नहीं हो रहा था, अतः वे साथ में ही रहे। उन्होंने सोचा मेघों के डर से ऐसी आत्मा की सेवा का सौभाग्य छोड़ देना महामूर्खता होगी, इससे वे चरणों के पीछे लगे रहे। जब योग्य स्थान पर संघ पहुंच गया और संघ के लोगों के ठहरने की व्यवस्था हो गयी, तब वर्षा ने भूतल को जलमय कर दिया। लोगों को कष्ट नहीं हुआ। सिद्धिसंपन्न सत्पुरुष का सान्निध्य अद्भुत प्रभावपूर्ण रहता है। जगतगुरु आचार्य शांतिसागर
आगे चलकर संघ गोसलपुर आया। वहाँ हिरन नाम की नदी पड़ती है। उसे पार करने के लिए नौका चलाने वालों ने पैसा नहीं लिया। उनको पैसा लेने को बहुत कहा, किन्तु वे बोले, “ये तुम्हारे ही गुरु नहीं है, ये महात्मा हम सबके गुरू हैं। उनकी सेवा करने के पैसे हम कदापि नहीं लेंगे।" यथार्थ में सभी लोग इनको अपना गुरु कहते थे। सन् १९५१ में नासिक कांग्रेस के महाअधिवेशन में श्री अजित प्रसादजी जैन तत्कालीन पुनर्वास मंत्री भारत सरकार आए थे। उनके साथ भारतीय पार्लियामेंट के सदस्य श्री बालकृष्ण शर्मा
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