________________
२१५
को विशेष रूप से विचारता है ।"
पं. जवाहरलाल नेहरू ने भी लिखा है कि यदि कोई व्यक्ति नेता है, तो उसका कर्त्तव्य है कि वह मार्गप्रदर्शन करे, न कि जनता की आज्ञा का पालन करे । '
मार्गदर्शक का कार्य चिकित्सक के सदृश समाज की निरोगता का सम्पादन, संरक्षण तथा संवर्द्धन रहा करता है । प्रायः देखा जाता है कि अत्यन्त विवेकी व्यक्ति भी रोगाकुल हो अपथ्य सेवन की लालसा करता है। चिकित्सक रोगी की इच्छा के विरुद्ध लंघनादि कटु और कठोर उपाय बताता है और कहता है कि यदि तुमने हमारे कथनानुसार प्रवृत्ति न करके स्वच्छंदता दिखाई, तो तुम्हारे जीवन की रक्षा न होगी। इसी प्रकार भोग, मोह तथा विषयान्ध व्यक्तियों को आचार्य महाराज आगमोक्त औषधि देते थे, उनका करुणापूर्ण हृदय यही चाहता था कि इस जीव का कल्याण हो तथा साथ में समाज भी मोक्षमार्ग में संलग्न हो जावे ।
चारित्र चक्रवर्ती
ऐसे अवसर पर एक विचित्र बात देखने में आती है। बीमार व्यक्ति डाक्टर या वैद्य के पास जाता है और उसकी राय के अनुसार काम करता है। रोग के विषय में वह किसी वकील, जज या प्रोफेसर के कथन को महत्व नहीं देता है, कारण वह जानता है कि ये शरीरशास्त्र में निष्णात नहीं हैं। अतः उस विषय में ये प्रमाण नहीं माने जा सकते हैं। यही नियम आगम के विषय में लगना चाहिए, किन्तु उसमें अधिकार की बात तो दूसरी, उस विषय से पूर्णतया अपरिचित व्यक्ति उस विषय में जीवन भर साधना करने वालों के गुरु बनकर उनको ज्ञान देने का साहस करते हैं तथा अपनी विषयों के वशवर्ती मनोवृत्ति के अनुसार चलने का लोगों से आग्रह करते हैं । वहाँ ये भूल जाते हैं कि जिस विषय का हमें तनिक भी परिचय नहीं है, उसके बारे में अपने को विशेषज्ञ मान अभिमत देना सत्य के प्रकाश मे अन्याय होगा ।
कई लोग स्वच्छंदता पोषक अखबारों के पाठी बन अपने को द्वादशांग का पाठी सोचने लगते हैं तथा तत्त्वतः निरक्षर भट्टाचार्य के भाई होते हुए भी निर्ग्रथ गुरु की वाणी को अपने अनुभव तथा अध्ययन- शून्य ज्ञान की नकली कसौटी पर कसकर अयोग्य
का साहस करते हैं और लोगों को भ्रम में डालते हैं । ऐसे लोगों का तो आज के भोगासक्त तथा चरित्रहीन लोगों में बोलबाला दिखता है। एक कवि कहता है
फूटी आँख विवेक की, भला करै जगदीस । कंचनियाँ को तीन सौ, धनीराम को तीस ॥
1.
If he is a leader, he must lead and not merely follow the dictates of the crowd.
Mahatma by Dr. Tendulkar, foreword Pt. Jawaharlal Nehru, P. XI
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education International