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प्रभावना
२१२ जबलपुर में स्वागत(धर्म ही तो सुख का हेतु है)
पनागर के समारंभ में जबलपुर की बहुत सी समाज भी आ गयी थी। इससे वहाँ की शोभा और बढ़ गई थी। संघ का पनागर आना ही जबलपुर के भाग्य उदित होने के उषाःकाल सदृश था। धार्मिक लोग सोच रहे थे, यहाँ कब संघ आता है ? शनिवार के प्रभात में संघं जबलपुर के लिए रवाना हुआ।
जबलपुर के अधारताल के पास लोगों ने योगिराज का भव्य स्वागत किया। संघ ने आकर मिलौनीगंज के मन्दिर की वंदना की। पश्चात् संघ गोलबाजार की तरफ रवाना हुआ। हजारों नर-नारियों का समुदाय इन संतराज के स्वागतार्थ इकट्ठा हुआ था। कटनी के बाद से अब आचार्य महाराज एक दिन के अंतराल से आहार लिया करते थे। कटनी में तो उनका त्याग बड़ा कठिन रूप में था। पाँच-पाँच, छह-छह, उपवास करना साधारण सी बात थी। यह होते हुए भी धार्मिक कार्यों में प्रमाद का लेश नहीं था। ___ महाराज का संघ जैन बोर्डिंग, गोलबाजार में विराजमान था। अब बोर्डिंग के स्थान में कालेज हो गया है। मुनियों के आहार के बाद जैन व्यापारी अपनी-अपनी दुकानें खोलते थे। जब धर्मपुरुषार्थ का लाभ हो रहा था, तब चतुर समाज ने यही सोचा कि अमूल्य अवसर पर उस धर्मनिधि का संचय करना ठीक होगा।
'धर्मः सुखस्य हेतुः' यही धर्म ही तो सुख का हेतु है। जिनवाणी की भक्ति(प्रत्येक शब्द के पीछे अनुभव और गम्भीर चिंतन) ___ २६ दिसम्बर, सन् १६२८ को जबलपुर के नागरिकों के विशाल समुदाय के समक्ष नेमिसागर मुनिराज का केशलोंच हुआ था। संघ के साधुओं द्वारा सदा धर्मामृत की वर्षा हुआ करती थी। आचार्य महाराज की आदत वचनगुप्ति की विशेष रहती थी। अतएव लोग उनके उपदेश के थोड़े-से शब्दों को बड़ा ध्यान देकर सुना करते थे। उनके प्रत्येक शब्द के पीछे अनुभव और गम्भीर चिंतन का भाव प्रगट होता था। महारान की वाणी में यह बड़ी बात थी कि वह तत्काल अन्तःकरण को शांति और आनन्द प्रदान करती थी। लोगों के मन में यही लगी रहती थी कि महाराज के मुख से कब शब्द सुनने में आते हैं। आचार्य महाराज सदा आगम के अनुसार ही कथन करते थे। श्रुत का अभीक्ष्ण अभ्यास रहने से अंतःकरण, विचार, बुद्धि अत्यन्त परिष्कृत हो गयी थी। अतः वे कभी भी आगम के विरुद्ध एक शब्द नहीं कहते थे। एक बार महाराज ने मुझसे कहा था, “हम एक अक्षर भी आगम के विरुद्ध नहीं बोलते हैं। जिनधर्म जिनवाणी में है। उस जिनधर्म में तुम्हें सर्व पदार्थ प्राप्त होंगे। जिनवाणी के अनुसार प्रवृत्ति करना चाहिए।" प्रायः देखा जाता है, परिस्थिति देख कर तथा लोगों को अनुरंजित करने के लिए लोगों के मुख से ऐसी
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