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प्रभावना देखें इन साधुओं का अन्तरंग जीवन कैसा है ?
उनके पास में पहुंच कर देखा, तो मन को ऐसा लगा कि कोई बलशाली चुंबक चित्त को खेंच रहा है। मैंने दोष को देखने की दुष्ट बुद्धि से ही प्रेरित हो संघ को देखने का प्रयत्न किया था, किन्तु रंचमात्र भी सफलता नहीं मिली। संघ गुणों का रत्नाकर लगा। गुरुदेव का व्यक्तित्व
आचार्य महाराज को देखकर आँखें नहीं थकती थी। उनके दो बोल कानों में अमृत घोल देते थे। उनकी तात्विक-चर्चा अनुभवपूर्ण एवं मार्मिक होती थी। वहाँ से काशी जाने की इच्छा नहीं होती थी। हृदय में यही बात आतीथी, जब सच्चे गुरु यहाँ विराजमान हैं, तो इनके अनुभव से सच्चे तत्त्वों को समझा जाय। यही तो सच्चा शास्त्रों का अध्ययन है।
हमारा पूरा अष्टाह्निका पर्व वहाँ ही व्यतीत हो गया। महाराज का जीवन तो हीरे के समान ही दीप्तिमान था। उस समय उनके दर्शन से ऐसा ही आनंद आता था, मानो अन्धे को आँखें मिल गई हों, दरिद्र को निधि प्राप्त हो गई हो। पश्चात्ताप
हृदय में यह भाव बराबर उठते थे कि मैंने कुसंगतिवश क्यों ऐसे उत्कृष्ठ साधु के प्रति अपने हृदय में अश्रद्धा के भावों को रखने का महान् पातक किया ? संघ के अन्य साधुओं का जीवन भी देखा, तो वे भी परम पवित्र प्रतीत हुए । “सोना जानिए कसे, आदमी जानिए बसे" -सुवर्ण की परीक्षा कसौटी पर कसे बिना नहीं होती है, आदमी की जाँच के लिए उसके साथ कुछ काल तक बातचीत होना आवश्यक है। जीवन तो आत्मा का गुण है, वह पुद्गल लेखनी के द्वारा कैसे बताया जा सकता है ? प्रत्यक्ष संपर्क से ज्ञात हो जाता है, कि इस आत्मा में कितनी पवित्रता और प्रकाश है ? मेरा सौभाग्य रहा जो मैं आचार्यश्री के चरणों में आया और मेरा दुर्भाव तत्काल दूर हो गया। मेरे कुछ साथी तो आज भी सच्चे गुरुओं के प्रति मलिन दृष्टि धारण किये हुए हैं : 'बुद्धिः कर्मानुसारिणी' खराब होनहार होने पर दुष्ट बुद्धि होती हैं। ___ उस समय कटनी में महाराज की तपश्चर्या बड़ी प्रभावप्रद थी। सभी संघ के साधु ज्ञान और वैराग्य की मूर्ति थे। धार्मिकों के लिए तो वे अमृत-तुल्य लगते थे, हाँ, विषयलोलुपी लोगों के लिए वे विषतुल्य अवश्य दिखते होंगें। आचार्यश्री कम बोलते थे, किन्तु जो बोलते थे, वह अधिक गंभीर तथा भावपूर्ण रहता था। पूजन, भजन, तत्त्वचर्चा, धर्मोपदेश में दिन जाते पता नहीं चला। वहाँ मास्टर श्री कुंदनमलजी नवीन गीत बनाकर गुणों के आगर गुरुओं की सुन्दर संगीत के साथ भक्ति करते थे। इस गुरुभक्ति के प्रसाद से वैभव ने इन्हें समलंकृत किया।
वर्षायोग समाप्ति का दिन आ गया। अब कल संघ का कटनी से विहार होगा, इस
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