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चारित्रचक्रवर्ती उत्पन्न करती है, जितनी कि हमारे मानव समाज के कोट्यावधि मानवों का ध्वंस उत्पन्न नहीं करता है।" जब तक जीवन में अहिंसा की शुभ्र ज्योति आलोक नहीं पहुँचाती, तब तक ऐसी संकीर्ण स्वार्थ की कोठरी से निकलकर विशाल विश्व के प्रागण में आने का न तो साहस ही होता है और न ही मनोबल उत्पन्न होता है। ___ इस घटना को देखकर समझ में आया की करुणा के परमाणु पुंज से सर्वाग पूर्ण होने के कारण ही मुनि को मंगल रुप मानना तो ठीक है ही, किंतु उनके द्रव्य शरीर को भी मंगल रूप क्यों माना है ? 'तिलोयपण्णत्ति' में आचार्य यतिवृषभ ने लिखा है, आचार्य, उपाध्याय तथा साधु की देह द्रव्य मंगल है। जिस शरीर के कण-कण में करुणा का रस भरा हुआ हो, वह शरीर अमंगल कैसे माना जायेगा? साधु के विषय में भ्रांति
कोई-कोई भ्रांत भाई साधु शब्द का प्रयोग स्वेच्छा वश जिस किसी के लिये लगा उसे वंदनीय तथा मंगल मूर्ति मानकर णमो लोए सव्वसाहूणं का अर्थ रागी द्वेषी देवों के आराधक, हिंसामय धर्म के उपासक तथा लोक मूढ़ताओं आदि के जाल में जकड़ी जघन्य वृत्ति वाली गृहीत मिथ्यात्वीआत्मा से करते हैं क्योंकि उनके नाम के आगे साधु का पुछल्का लगा है। परमार्थ दृष्टि से जो वैज्ञानिक दृष्टि सम्पन्न श्रेष्ठ अहिंसा धर्म के परिपालक, करुणामूर्ति, वीतरागता के आराधक तथा अठ्ठाईस मूलगुण संपन्न निर्ग्रन्थ होंगे, वे ही यथार्थ में साधु पद के वाच्य होंगे। व्यवहारवश तो नरराज को गजराज कहने में भी आपत्ति नहीं की जाती है। करुणा का छत्र ___ मुनियों की करुणावृत्ति द्वारा परार्थ के साथ स्वार्थ की सिद्धि भी हुआ करती है। दूसरे जीव की व्यथा दूर होती ही है, किंतु करुणा का छत्र तानने वाले को भी स्वत: सुखद शीतल छाया प्राप्त होती है। शेक्सपियर ने लिखा है, "यह करुणा, पात्र तथा दाता दोनों को आनंद प्रदान करती है।"१ अज्ञानवश बड़े-बड़े पढ़े लिखे लोग तक ऐसी भूल कर जाते हैं जो इन परम करुणा मूर्ति प्राणियों को अभय और आनंद दान करने वाली विभूतियों को स्वार्थी (Selfish) सोचते हैं। प्रतीत होता है कि उनके आदर्शवत जीवन में वे स्वयं अपना प्रतिबिंब देखकर विवेचन करने बैठ जाते हैं। ये महर्षि करुणामय प्रवृत्ति करते हैं, सदा सबके कल्याण की कामना करते हुए यही भावना करते हैं : “क्षेमं सर्व प्रजानां प्रभवतु" (सब जीवों का कल्याण हो)। हिंसा की वैतरिणी में डुबकी लगाने वाले, परम अहिंसकों के
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1.“ It is twice blest; it blesseth him that gives and him that takes”
___ 'Merchant of venice.' IV, I.
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