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चारित्र चक्रवर्ती बड़ी भीड़ थी। वहां के बड़े-बड़े अधिकारी भी उपस्थित थे। उस दिन शहर का कसाई खाना बन्द कर दिया गया था। जिस दिन आचार्य महाराज का आहार सेठ माणिकचन्द मोतीचंद के यहां निर्विघ्न हुआ उस दिन आनन्द मग्न होकर उन सेठ साहब ने शेडवाल अनाथ छात्राश्रम को विशेष दान दिए। यह इस बात को सूचित करता है, कि ये साधु जनता को कितने प्रिय होते हैं और उनका आहार भार नहीं होता है, प्रत्युत वह दातार को आभारी करता है। वह जीवन भर उन स्वर्ण क्षणों का स्मरण किया करता है, जब युग श्रेष्ठ अहिंसा के आराधक महापुरुष साधुराज द्वारा उसका गृह पवित्र किया गया था। गुंजोटी ग्राम की विशेष बात
आलंद से गुंजोटी जाने का मार्ग मोटर के जाने के अयोग्य था, अतः गुरुभक्तअ श्रा हीराचन्द माणिकचन्द शाह ने वह रास्ता तुरन्त ठीक कराया। संघ गुजोटी में सेठ देवचन्द धनजी के उद्यान में ठहरा। आचार्यश्री का आहार सेठ गुलाबचंद देवचन्द के यहां हुआ। उन्होंने पांच हजार रुपया शेडवाल अनाथाश्रम को दान में दिए। गुरु दर्शनार्थ तथा उनके अहिंसामय उपदेश को सुनने जनता और अधिकारी लोग आते थे।
इसके अनन्तर एक विशिष्ट घटना यह हुई कि आचार्यश्री ने आगे विहार का निश्चय कर संघ को आज्ञा दे दी। जब यह बात जनता और राज्य के अधिकारी वर्ग को विदित हुई तब उन्होंने महाराज से अनेक बार रुकने की प्रार्थना की, किन्तु उसका कुछ असर न हुआ, कारण महाराज सत्यव्रती हैं। जो वाणी मुख से निकल जाय उसका प्राणपण से पालन करते हैं। इससे यह भी ज्ञात होता है कि ये महापुरुष सदा आत्माराधन में तत्पर रहते हैं। जनता की भक्ति, उसका प्रेम न इन्हें हर्षित करता था और न नीचों का दुष्ट व्यवहार इनको दुःखी ही करता था। सत्यव्रती मुनि का वचन पालन
ये वीतराग तपस्वी दोनों अवस्था में साम्य संपन्न मानसिक संतुलन को सम्यक् प्रकार से सुरक्षित रखते हैं। व्यापारिक मनोवृत्ति इनकी नहीं रहती, अन्यथा लाभ की कल्पना कर पूज्यश्री, अपने प्रस्थान के कार्यक्रम को बदल देते। ये सत्य महाव्रती मुनिराज निश्चय पूर्वक जो वचन कह देते हैं उसकी पूर्ति किए बिना नहीं रहते हैं। इस प्रतिज्ञापूर्ति के हेतु प्राणों की आहुति को भी तैयार होते हैं। एक बात और है कि वे गंभीर विचार के उपरांत ही अपना पक्का निश्चय करते हैं। विचाराधीन बात में फेरफार हो सकता है। इनका निश्चय तो हिमालय से भी अधिक दृढ़ होता है। लाभ की लोलुपता लौकिक लोगों को लुभा लिया करती है, किन्तु इन संतों को आगमोक्त सिद्धांत के संरक्षण का ही सदा ध्यान रहता है।
इन श्रमणों के जीवन का निकट से निरीक्षण करने पर विवेकी व्यक्ति को बोध होगा
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