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तीर्थाटन पुण्य भावनाओं को जागृत करता है तब तीर्थराज का साक्षात् दर्शन के हर्ष का वर्णन कौन कर सकता है ? सम्मेदशिखर जी में भव्य पुरी का निर्माण
उस समय संघ का प्रत्येक व्यक्ति हृदय से आचार्य महाराज के प्रति कृतज्ञता प्रगट कर रहा था। जिन गुरुराज के निमित्त से यह तीर्थ-वंदना का सुयोग चतुर्विध संघ के साथ मिला था। मधुवन में पहुंचते ही वहाँ के सुन्दर जिनमंदिरों के दर्शन से श्रांत यात्री को अपूर्व शांति तथा स्फूर्ति प्राप्त होती है। अब शिखरजी का आध्यात्मिक सौन्दर्य नंदीश्वर मंदिर, चौबीस टोंक रचना, बाहुबलि स्वामी की मूर्ति, मानस्तम्भ, मनोज्ञ समवशरण मंदिर, सहस्त्रकूट चैत्यालय आदि से बहुत प्रवर्धमान हो गया है । इस महान् कार्य में स्व. पं. पन्नालालजी धर्मालंकार' की सेवाएँ चिरस्मरणीय रहेंगी। अद्भुत पुरुषार्थथा उनका।आचार्य संघ के पदार्पण के पहले ही धर्म भक्त भव्यों का समुदाय वहां पहुंचा था, इससे वह स्थल भव्यपुरी समान दिखता था। श्रेष्ठ निर्वाण भूमि का दर्शन, पंचकल्याणक का लाभ होने के साथ श्रेष्ठरत्नत्रयमूर्ति आचार्य महाराज का दर्शन मिलेगा, इसलिए लाखों लोगों ने शिखरजी आकर एक विशाल धार्मिक नगर का दृश्य उपस्थित कर दिया। उस समय सभी ट्रेनों में अपार भीड़ थी। स्पेशल ट्रेनें पारसनाथ स्टेशन को जल्दी जल्दी आ रही थी। जैन समाज अल्पसंख्यक है, यह बात उस समय समझ में नहीं आती थी। रेलवे के टिकिट बाबू का कहना था, कि एक लाख बीस हजार टिकटें उसके हाथ में आयी थी। मोटर आदि वाहनों द्वारा पहुंचने वालों की गणना करना कठिन था। देखने में वह स्थान धर्मपुरी या अहिंसानगर के रूप में प्रतीत होता था। इस नगरी का प्रत्येक व्यक्ति पवित्र अहिंसा, सिद्धांत के अनुसार प्रवृत्ति करता था। इस पुरी के प्राण तथा आराध्य देव संतराज आचार्य शाँतिसागर महाराज थे, जो पवित्रता, परिशुद्धता तथा दिव्यता के भण्डार थे। सच्ची धर्मपुरी या अहिंसा नगर का रूप
स्वनामधन्य दानी संघपति मुक्ता की कमाई को मुक्त भूमि में मुक्ति के हेतु मुक्त हस्त हो व्यय करने में संलग्न थे। जंगल में लाखों लोगों का प्रबन्ध करने में वास्तव में पानी की तरह खर्च होने वाले पैसे की ओर दानी बन्धुओं का ध्यान न था। उनका दान परम सात्त्विक रत्नत्रय धर्म की प्रभावना से संबंधित होने से अन्य विपुल द्रव्य दाताओं के मध्य सूर्य सदृश शोभायमान हो रहा था। वे बड़े विवेकी और कुशल थे। उन्हें विश्वास था कि कल्पवृक्ष के समान आचार्य महाराज के उदार चरणों का जब आश्रय मिल गया है, तब किस बात की कमी हो सकती है ?
उस धर्मपुरी में सभी लोग धर्म पुरुषार्थ की कमाई में लगे थे। आधीरात से हजारों
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