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चारित्र चक्रवर्ती से हिन्दू, मुसलमान आदि अन्य धर्म के लोगों ने भी बहुत लाभ उठाया, मद्य, मांस का बहुतों ने त्याग किया। - उस समय भीषण गर्मी पड़ती थी, किन्तु महाव्रती साधुओं के नियम जीवन भर को अटल रहते हैं। इस काल में पानी पीते ही क्षण भर में उदराग्नि द्वारा भस्म हो जाता था, फिर भी मुनीश्वर आहार के समय ही प्रासुक जल पीते थे और फिर ऊष्णकाल में विहार भी करते जाते थे। गरम पवन आग की लपटों का स्मरण कराती थी। लोग घबड़ा उठते थे। किन्तु महाव्रती मुनिराज अपने आत्मस्वरूप का चिन्तन करते हुए समताभावपूर्वक कष्टों को सहन करते थे। इससे उनके पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा होती थी। सोनभद्र ___ मार्ग में विशाल सोनभद्र नदीं मिली। प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में सोनभद्र को नद लिखा है। इसके दोनों तरफ रेल्वे स्टेशन है। एक सोन ईस्ट बैंक और दूसरा सोन वैस्ट बैंक कहलाता है। सोन के एक तट पर डेहरी नामक बस्ती है, उसे डेहरी आन सोन कहते हैं। अब उसके पास ही एक औद्योगिक नगर"डालमिया नगर"नाम का बस गया है। वैसाख सुदी षष्ठी को संघ सासाराम नामक ऐतिहासिक नगर के समीप पहुंचा। यहाँ बहुत जनता ने गुरुदेव के दर्शन किये और अहिंसादि के नियम लेकर मद्य, मांसादि का त्याग किया। संघ बस्ती से तीन मील दूरी पर एक आम्रवन के नीचे ठहरा था। यहां चंद्रसागर जी का केशलोंच हुआ था। काशी (पारस-सुपारस की जन्मभूमि होने से सच्ची शिवपुरी)
वैशाख सुदी चौदस को संघ मुगलसराय पंहुचा। पूर्णिमा को संघ के लोग काशी पहुंचकर भेलूपुरा की धर्मशाला में ठहर गये। जेठ प्रतिपदा के प्रभात में मुनिराजों ने काशी के लिए प्रस्थान किया। बड़े वैभव के साथ हजारों लोगों ने महाराज का स्वागत किया। गाजे बाजे के साथ जुलूस निकला।
काशी तो भारत की सांस्कृतिक राजधानी है। वहां के बड़े बड़े विद्वानों तथा तपस्वियों ने महाराज का दर्शन करके तथा उपदेश सुनकर आनंद प्राप्त किया। मुनिगण आहार के लिए नगर में जाते थे। कभी कभी मैदागिनी के मंदिरों का दर्शन भी किया करते थे। इन दिगंबर श्रमणों को राजपथ से आते जाते देखते हुए काशी के वैदिक विद्वानों तथा सब हिन्दू भाइयों को बड़ा हर्ष होता था कि आज दिन भी ऐसे निर्विकार परमहंस वृत्ति वाले तपस्वी लोग भूतल को पवित्र कर रहे हैं।
काशी को शिवपुरी कहते हैं। 'शिव' शब्द कल्याण का द्योतक है। महाकवि बनारसीदास इस नगरी को भगवान सुपार्श्वनाथ तथा पार्श्वनाथ स्वामी की जन्मपुरी होने
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