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तीर्थाटन
१७६ की ध्यान मुद्रा से ऐसा प्रतीत होता था, मानो उन्होंने अपने ज्ञानोपयोग द्वारा मुक्तात्माओं का साक्षात्कार कर लिया हो। उनकी एकाग्रता और स्थिरता देख ऐसा प्रतीत होता था कि कोई मूर्ति ही हो। शिखरजी शैल पर आचार्य महाराज - स्वामी समंतभद्र ने लिखा है कि जिस स्थान से भगवान का मोक्ष होता है उस स्थल पर इंद्र महाराज चिह्न बना दिया करते हैं। भगवान कुन्थनाथ की टोंक ज्ञानधर कूट के नाम से प्रसिद्ध है। वहाँ से मुक्त होने वाली छयान्नवे कोड़ा कोड़ी, छयान्नवे करोड़, बत्तीस लाख, छयान्नवे हजार, सात सौ ब्यालीस मुनियों ने सिद्ध पद प्राप्त किया। ऐसे स्थान पर सिद्ध पूजा की जयमाल कितनी शांतिप्रद लगती है, यह प्रत्येक सहृदय सोच सकता है। वहाँ सिद्धों को प्रणाम करते हुये ये पद बड़े प्रिय लगते हैं :
विराग सनातन शांत निरंश निरामय निर्भय निर्मल हंस ।
सुधाम विबोध निधान विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्ध समूह॥ इस प्रकार भावमय सिद्धों का गुण स्मरण आत्मा को आनंद विभोर बनाता है। आज हजारों मील पैदल चलकर शैलराज पर विराजमान बीस तीर्थंकरों के चरण चिह्नों को प्रणाम करते हुए तथा अगणित मुक्त आत्माओं को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए श्रमणराज शांतिसागर महाराज को जो शांति मिली, जो प्रकाश प्राप्त हुआ उसका अनुमान राग रोगी आत्मा कैसे कर सकती है। कषायों का अभाव हुए बिना उस निर्मलता को कौन जान सकता है ? अंधा आदमी नेत्र वाले के रूप, ज्ञान का वर्णन कैसे कर सकता है ?
इस श्रेष्ठ तीर्थ पर श्रेष्ठ मुनि को देखकर सुरराज का मन भी उन्हें प्रणाम करने को तत्पर होता होगा। किसी चित्र के लिये उपयुक्त पृष्ठ -भूमि का होना आवश्यक है, आचार्य शांतिसागर की चरणपूजा के लिये यह स्थान अन्वर्धतः पार्श्वभूमि रूप है। सचमुच में यह शैलराज पार्श्व तीर्थंकर की भूमि ही तो है। आचार्यश्री ने भिन्न-भिन्न टोकों की भावपूर्वक वंदना की। तिलोयपण्णत्ति में यह स्मरण योग्य बात आई है “भगवान् ऋषभदेव ने १४ दिन पूर्व तथा दो दिन पूर्व महावीर भगवान् ने योग निरोध किया था तथा मोक्ष प्राप्तकियाथा। शेष तीर्थंकरों ने एक माहपूर्व योग निरोध किया था। भगवान् ऋषभदेव, वासुपूज्य तथा नेमिनाथ ने पल्यंक आसन से मोक्ष प्राप्त किया था। कुन्थुनाथ भगवान् आदि जिनेन्द्रों ने कायोत्सर्ग मुद्रा से मोक्ष प्राप्त किया था। भगवान् कुंथुनाथ चक्रवर्ती तथा कामदेव पदवी युक्त हुए थे। अरनाथ तथा शांतिनाथ तीर्थंकर भी तीन पदवी के धारक थे। पर्वत पर स्थित भगवान् चन्द्रप्रभु का ललितकूट बड़ा आकर्षक लगता है। ललितकूट का तथा पार्श्वप्रभु के सुवर्णभद्रकूट इन दो टोकों का पर्वत के नीचे से भी स्पष्ट दर्शन होता है। पूसवदी एकादशी को भगवान् चंद्रप्रभु तथा भगवान् पार्श्वनाथ प्रभु का
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