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चारित्र चक्रवर्ती विश्वकवि डॉ. टैगोर ने लिखा है-“यूरोप में लगाम पहने हुए मरना एक गौरव की बात समझी जाती है।"काम कैसा ही हो, आखिरी जीवन पर्यन्त जोश के साथ हाथ-पैर हिलाते हुए मर जाना, श्रेष्ठ कार्य सोचा जाता है। इस दृष्टि के विषय में रवि बाबू ने लिखा है-"जब किसी जाति को इस कर्म चक्र में घूमने का चसका लग जाता है, तब फिर पृथ्वी में शांति नहीं रह पाती।" बहुत समय पहले व्यक्त किए कवीन्द्र रवीन्द्र के उपरोक्त उद्गार आज के युग में पूर्ण सत्य प्रमाणित होते हैं। भोग के रोगी मुनियों की महत्ता को नहीं समझ पाते
आज का जगत् यथार्थ में ज्वालामुखी के मुख पर बैठा हुआ दिखता है। एक चिनगारी कहीं से पहुंची कि विस्फोट द्वारा प्रलय का दृश्य उपस्थित होने में देर न लगेगी। ये भोग के रोगी स्वस्थ वीतराग संतों और संस्कृति के सत्य स्वरूप को अपनी मलिन दृष्टिवश निर्दोष रूप से देख ही नहीं पाते हैं। आध्यात्मिकता के शव पर निर्मित जड़वाद का प्रासाद मृत्यु के मंदिर से तनिक भी भिन्न नहीं है। अतः उसे यमालय के सिवाय अन्य उपयुक्त नाम नहीं दिया जा सकता। भोगप्रधान संस्कृति __ आत्म-विद्या की कसौटी पर कसने पर ज्ञात होगा, कि आज की सभ्यता बर्बरता का स्वर्ण संस्करण (Golden Edition) है। नागनाथ और सांपनाथ में क्या अंतर है ? भोग प्रधान संस्कृति भी विकृति का मोहक रूप है। रवीन्द्र बाबू ने सुन्दर बात कही है, “यह स्वीकार करना होगा, कि संतोष, संयम, शांति और क्षमा ये सभी सर्वोच्च सभ्यता के अंग हैं। इनमें चढ़ा ऊपरी-रूपी चमक-दमक पत्थर की रगड़ का शब्द और चिनगारियों की वर्षा नहीं है।"उनके ये शब्द बड़े अनमोल हैं, “इनमें हीरे की शीतल, शांत ज्योति है। उस रगड़ के शब्द और चिनगारियों को इस स्थिर, सत्य ज्योति से बढ़कर, कीमती समझना कोरा जंगलीपन है।" उज्ज्वल संस्कृति का आधार स्तंभ
श्रमणोंनेवासनाओं की विजयको संस्कृति का आधारस्तंभमाना है। जैसे-जैसे वासनाओं की विजय बढ़ती जाती है, वैसे वैसे आत्मा का विकास होता जाता है। उस आत्मविकास के हेतु ही जैन मुनि पर-पदार्थों का त्याग करते हैं और उन वस्तुओं के प्रति आत्मा में छुपी ममता के बीजों के विनाशार्थ निरंतर उद्योग करते हैं ध्यान करते हैं। रवि बाबू के इन शब्दों में कितना सत्य है, “वासना को छोटा करना ही आत्मा को बड़ा करना है। यूरोप मरने को भी राजी है, किन्तु वासना को छोटा करना नहीं चाहता। हम भी मरने को राजी हैं, किन्तु आत्मा को उनकी परम गति-परम संपत्ति से वंचित करके छोटा बनाना नहीं चाहते।"इस वासना
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