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चारित्र चक्रवर्ती की ओर खिंचता जा रहा था। महाराज का जीवन उपसर्गों के सहने से विरागता और आध्यात्मिक दीप्ति का केन्द्र बन रहा था। अग्नि के ताप को सहनकर जैसे स्वर्ण शुद्ध
और दीप्तिमान होता है, वैसी ही उनकी अवस्था थी। कोन्नूर में सर्प का उपसर्ग शान्त भाव से सहन करने की चर्चा जिस किसी व्यक्ति के कान में पड़ती, उसका मन इन गुरुदेव की वंदना के लिए लालायित हो जाता था। यहाँ आने वाले को महाराज का जीवन कल्पवृक्ष के समान प्रिय और निरंतर आश्रय योग्य लगता था। नाटककार रामचंद्रजी ने बह्मचर्य प्रतिमा ली, और भी व्यक्तियों के परिणाम इन व्रत निधान के पास से संयम प्राप्त करने के हो रहे थे। श्री खुशालचंदजी पहाड़े और ब्र. हीरालालजी का पुण्य उनको पुन: यहां खेंच लाया। चातुर्मास के बाद जब महाराज बाहुबली पहुंचे, तो खुशालचंदजी ने क्षुल्लक दीक्षा धारण की, उनका नाम चंद्रसागर रखा गया, हीरालालजी ने भी क्षुल्लक दीक्षा ली और वे वीरसागर कहे जाने लगे। समडोली चातुर्मास
यहाँ से विहार करते हुए महाराज समडोली ग्राम पहुँचे। वहाँ उन्होंने चातुर्मास किया। यहाँ दूर दूर के हजारों व्यक्तियों ने महाराज के दर्शन का लाभ किया। समडोली के पाटील महाराज के बड़े भक्त थे। संघ को वर्षाकाल में कोई कष्ट न हो, इसलिये सारी बस्ती में नवीन सड़कों का निर्माण हुआ। वहां ऐसा लगता था मानो कोई बड़ा भारी मेला चार माह के लिये लगा हो। बाहर से आने वाले लोगों की सर्वप्रकार से सुव्यवस्था थी। अपना कुटुम्ब मान लोग धार्मिकों का स्वागत करते थे। दक्षिण प्रान्त में संयम की अनुकूलता
इस प्रान्त में यह विशेष बात है कि कोल्हापुर, बेलगांव, सांगली आदि के आसपास के निकटवर्ती ग्रामों में जैनियों की संख्या बहुत है। हजार घर वाले ग्राम में सहज ही पचहत्तर प्रतिशत जैनियों की संख्या का पाया जाना साधारण बात समझी जाती है। यहाँ मुनिजीवन व्यतीत करने के लिये सर्वप्रकार की अनुकूलता पायी जाती है। श्रावक समुदाय प्राय: कृषिजीवी हैं। वे शुद्ध खानपान किया करते हैं। शुद्ध घी, दूध, जल, भोजनादि की स्वत: अनायास व्यवस्था पायी जाती है। जिस तरह अन्य प्रांतों में साधु के आहार कराने के लिए आहार आदि की व्यवस्था करने में लोगों को अपने प्रांत में फैले शिथिलाचार के जाल के कारण कठिनता मालूम पड़ती है, वैसी स्थिति यहाँ नहीं है। यह प्रान्त समशीतोष्ण कटिबंध में है। यहाँ न ग्रीष्म का संताप प्रचंडता दिखाता है और न ठंड का प्रकोप ही असह्य पीड़ा उत्पन्न करता है। ऐसी स्थिति में यह भूमि संसार से विरक्त व्यक्तियों को श्रेष्ठ दिगम्बर मुद्रा धारण करने की सहज प्रेरणा देती है।
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