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चारित्र चक्रवर्ती से उस सामग्री को पहले ही सुरक्षित स्थान पर रख दिया था, इससे कुछ भी क्षति नहीं हुई।
गुरुदेव के अन्तःकरण में दूसरे के दुःख में यथार्थ अनुकम्पा का उदय होता था। एक दिन वे कहने लगे-“लोगों की असंयमपूर्ण वृत्ति को देखकर हमारे मन में बड़ी दया आती है, इसी कारण हम उनको व्रतादि के लिए प्रेरणा देते हैं। जहां जिस प्रकार के सदाचरण की आवश्यकता होती है, उसका प्रचार करने की ओर उनका ध्यान जाता है। बेलगांव, कोल्हापुर आदि की ओर जैन भाई ग्रहीत मिथ्यात्व के फेर में थे, अतः महाराज उस घर में ही आहार लेते थे, जो मिथ्यात्व का त्याग करता था। उनकी इस प्रतिज्ञा के भीतर आगम के साथ सुसंगति थी। मिथ्यात्व की आराधना करने वाला मिथ्यात्वी होगा। मिथ्यात्वी के यहांका आहार साधुको ग्रहण करनायोग्य नहीं है। उसके श्रद्धादिगुणों का सद्भाव भी नहीं होगा। उत्तर प्रांत में शिथिलाचार सुधारने हेतु प्रतिज्ञा ___ अब संयम का सूर्य दक्षिणायन के बदले उत्तरायण होने जा रहा था। उत्तर की ओर
जो खान पान में शिथिलता थी, उसका सुधार किया जाना जरूरी था। प्रायःप्रत्येक घर में पानी भरने का कार्य जो व्यक्ति करता है, वह मांसभोजी रहा करता था। उसके घर में
और भी अशुद्धताएं हो जाया करती हैं, जिनका उसे अपने हीनकुल के कारण ध्यान नहीं होता है। जैसे चमार के हाथ का पानी पीने वाला ऐसा पानी नहीं प्राप्त कर सकेगा, बिसका चमड़े से सम्बंधन हो। मूल बात इतनी है, हीन आचरण और हीन संस्कार वाले वर्ग के हाथ का जल यदि भोजनालय में आता है और उससे आहार बनता है तो वैसा अशुद्ध जल निर्मित आहार महाव्रती साधु की श्रेष्ठ अहिंसा की साधना के अनुकूल कैसे होगा, यह बात दूर तक सोचकर महाराज ने आगे यह प्रतिज्ञा की थी कि जो शूद्र-जल का त्यागी होगा, उस जैनी के ही हाथ का आहार लेंगे। शुद्रबल त्याग के नियम का महत्व
कोई-कोई यह सोचते हैं कि उदारचेत्ता साधु को जहां भी योग्य भोजन मिला उसे लेने में आना-कानी नहीं करना चाहिये। यह विचार महाव्रती की श्रेष्ठ वृत्ति के प्रतिकूल है। इस नियम के द्वारा जिनवाणी को प्राण मानने वाले जिनेन्द्र की भक्तियुक्त व्यक्ति के द्वारा ही शुद्ध रीति से बल-गालन, निर्दोष आहार बनाना आदि का कार्य बनेगा, उसमें ही दाता के सात गुण होंगे, वही नवधाभक्ति कर सकेगा। दूसरा आदमी अपनी भिन्न धार्मिक श्रद्धा तथा आचरण के कारण दाता के गुण से हीन होगा। कदाचित् तर्क के लिये नियमों की लम्बी सूची के द्वारा ऐसी व्याख्या बना भी दें, जिससे शुद्र का नाम न लेना पड़े, तोभी कार्य नहीं बनता, कारण सर्वसाधारण में जो प्रचलित अर्थ शुद्र शब्द से ज्ञात होता है, वह उस
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