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तीर्थाटन
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संज्ञप्यसे, एतत्, त्वं न म्रियसे, न विनश्यसि । देवयानमार्गे : देवान् द्रुतं गच्छसि । अर्थ : हे अश्व ! हम तुम्हारा जो बलिदान करते हैं। इससे तुम्हारा मरण नहीं होता है तथा तुम्हारा विनाश भी नहीं होता है। तुम देवों के विमान गमन के मार्ग से शीघ्र सुरत्व प्राप्त करते हो। इस कारण आज भी अगणित जीव धर्म के नाम पर व्यक्तिगत स्वार्थ पोषणार्थ मारे जाते हैं।
दूसरे प्राणियों के प्राणों का घात करते हुए जीव अपने सुखी जीवन का निर्माण करना चाहता है, इससे बड़ी स्वार्थपरता (Selfishness ) तथा खुदगर्जी (Self-centred) दृष्टि कहां होगी ? जिनको दूसरे के दुःख-दर्द का जरा भी ध्यान नहीं है, वे विशाल हृदययुक्त (Enlarged self) व्यक्ति कैसे कहे जा सकते हैं ? इस अहिंसा मूलक तत्त्वज्ञान को विस्मृत करने के कारण ही बर्डेड रसेल ने धार्मिक संतों के जीवन में स्वार्थपरता, खुदगर्जीपने की दुर्गन्ध का अनुभवन किया था । "
राज्य धर्म पर प्रकाश
राज्यधर्म के सम्बन्ध में पूज्य महाराज के बड़े तर्क- शुद्ध विचार थे। महाराज का कथनरामचंद्र, पांडव ने राज्य किया था । उनका चरित्र देखो । जब दुष्टजन राज्य पर आक्रमण करें, तब शासक को रोकना पड़ता है। दूसरे राज्य के अपहरण करने को नहीं जाना चाहए। निरपराध प्राणी की रक्षा करना चाहिये । राजा का कर्तव्य है, कि संकल्पी हिंसा बंद करे। निरपराधी जीवों की रक्षा करे। शिकार न खेले, न खिलावे । देवताओं के आगे जीव के बलिदान को बंद करावे | दारू, मांस खाना बंद करावे । परस्त्री अपहरण को रोके । राजनीति
राजा अपने पुत्र को भी दंड देता है। जुआ, मांस, सुरा, वेश्या, आखेट (शिकार) चोरी, परांगना परस्त्री के सेवन रूप सात व्यसन हैं। इन महापापों को रोकना चाहिये। सज्जन का पालन करना और दुर्जन का शासन करना राजनीति है । सत्य धर्म का लोप नहीं करना चाहिये। हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, तथा अतिलोभ ये पांच पाप अधर्म हैं। इनका त्याग धर्म है। धर्म को ही अन्याय कहते हैं। जिस राजा के शासन में प्रजा नीति से चले उस राजा
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पुण्य प्राप्त होता है। अनीति से राज्य करने पर उसे पाप प्राप्त होता है।"
महाराज ने कहा- “राजनीति तो यह है कि राज्य भी करे तथा पुण्य भी कमावे। पूर्व में तप करने वाला राजा बनता है। दान देने वाला धनी बनता है। राज्य पर यदि कोई आक्रमण करे तो उसको हटाने के लिए प्रति आक्रमण करना विरोधी हिंसा है, उसका त्याग गृहस्थी के नहीं बनता है, उसे अपना घर सम्हालना है और चोर से भी रक्षा करना है।
सज्जन राजा गरीबों के उद्धार का उपाय करता है। गरीब दो प्रकार के हैं, जो हृष्ट
1. Vide 'Among the Great' - Bertrand Russel.
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By D.K. Roy PP. 128-129.
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