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चारित्र चक्रवर्ती करता है, जरूरत पड़ने पर वह सड़े अंग को काट भी देता है, ऐसा ही कार्य प्रायश्चित्त प्रधान विधि में आचार्य करते हैं। इसलिये इस समस्या को धन के मद में या तरुणाई के जोश में सुलझाने के स्थान में बड़े दूरदर्शी, मानव स्वभाव के पारखी, परमागम के प्रेमी पुरुषों के परामर्श तथा मुनियों या मुनि-तुल्य मानस वालों के साथ विचार कर सुलझाने का उद्योग करना कर्तव्य है। एक विद्वान् ने लिखा है-“अग्नि और जल के समान वासनाओं की भी स्थिति है। वे हमारे आधीन होने पर अच्छी सेवा करते हैं, किन्तु वे अयोग्य स्वामी हैं। वासनाओं को दास बनाना हितकारी है, उनका दास बनना अकल्याण प्रद है।"
इस दृष्टि से वासनाओं पर अंकुश प्रहार करने वाली उज्ज्वल आत्माओं की महिमा को विषयों का दास सहज ही नहीं समझ पाता है, अतः उनके विषय में विचार करते समय श्रावकों को पूर्ण सतर्कता और सावधानी से कार्य करना चाहिए। जिनका व्यक्तित्व महान होता है, उनके समक्ष बड़े-बड़े लोग स्वयं झुका करते हैं। आचार्य महाराज के पवित्र व्यक्तित्व के संपर्क में जो भी पुण्योदयवश आता था, वह आत्मा के लिए अपूर्व प्रकाश पाता था । अहिंसा और अपरिग्रह के प्रतीक, महाराज का संघ बढ़ता चला आ रहा था। सांगली
अब संघ सांगली रियासत में आ गया। मार्गशीर्ष बदी सप्तमी को सांगली राज्य के अधिपति श्रीमन्त राजा साहब, महाराज के दर्शनार्थ पधारे, इन्होंने अवर्णनीय आनन्द प्राप्त किया। आचार्य महाराज ने सच्चे धर्म का स्वरूप बताते हुए राजधर्म पर प्रकाश डाला। सच्चे क्षत्रियों को यह जानकर बड़ा हर्ष होता है कि जैन धर्म का प्रकाश फैलाने का श्रेय जिन तीर्थंकरों को था वे क्षत्रिय कुलावतंस ही थे। अहिंसा के ध्वज को सम्हालने वाले क्षत्रिय वीर ही रहे हैं। ___ इस बात के प्रमाण वैदिक साहित्य में प्राप्त होते हैं कि पशु बलिदान का मार्ग ब्रह्मज्ञाता कहे जाने वाले ब्राम्हणों द्वारा पोषित था और अहिंसा को परम धर्म बता प्रेम की गंगा प्रवाहित करने का श्रेय पराक्रमी क्षत्रिय नरेशों को था। यह महत्व के साथ ही साथ आश्चर्य की भी बात थी, कि जिस वीर हाथ में यम की जिह्वा समान लपलपाती तलवार रहती थी वह जीवन का मूल्य जान जीवों को अभय देता था और जो ब्रह्म की बातें बनाते थे, वे जीवों को अग्नि में स्वाहा करने का जाल फैलाते थे।
पुराना जाल ग्रंथों में जीवित व उपदेशों के रूप में विद्यमान है। सांख्यतत्त्व कौमुदी, पृ. ४३ की टीका में घोड़े की बलि का यह मंत्र दिया गया है- हे अश्व ! यत् त्वं अस्माभिः
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"It is with our passions, as it is with fire and water, they are good servant, but bad masters."
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