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चारित्र चक्रवर्ती निर्वाण भूमि परमार्थतः वीर भूमि है
निर्वाणभूमि का दर्शन करना मुनियों का कर्त्तव्य भी है। निर्वाणभूमि परमार्थतः वीर भूमि है, जहां सिद्ध बनने वाली वीर आत्माओं ने अनादिकाल से आत्मा की अनंत
दुःखों में डुबाने वाली कर्म सैन्य का आत्यंतिक क्षय किया है। मुनियों की निग्रंथ दीक्षा को वीर दीक्षा कहते हैं। ये ही वीर हैं जो कर्मों के उदय से जरा भी न घबराते हुए रत्नत्रय रूप खड्रग के द्वारा कर्मों के संहार में सतत समुद्यत रहते हैं। महावीरों के पराक्रम के श्रेष्ठ क्षण जिन स्थलों पर व्यतीत हुए उस जगह पहुंचकर उनका अभिवादन करना, उनकी वीर भक्ति का विशेष अंग माना जायगा। अतः निर्वाण स्थल की वंदनार्थ जाना अत्यन्त समुज्ज्वल कार्य है। इतना अवश्य है कि उस वंदना के हेतु जाते समय मन को पापवासनाओं से धोकर जाना आवश्यक है। उसके द्वारा यदि जीवन में मधुरता न आई, पवित्रता का वसंत जीवन को श्री संपन्न न बना सका तो कहना होगा मछली सिन्धु के मध्य में रहते हुए भी प्यासी की प्यासी ही रही है। इस प्रकरण में हमें एक मुस्लिम हाजी से सुना यह शेर स्मरण आता है :
मक्का गये मदीना गये, बन कर आए हाजी।
आदत गई न इल्लत गई, फिर पाजी के पाजी। यथार्थ में मोही तथा पापवासनासक्त व्यक्ति की यही अवस्था होती है, वे पाजी के पाजी रहते हैं, वे मोक्ष की शुद्धात्मा की, शुक्ल ध्यान की लम्बी चौड़ी लच्छेदार बातें करते हैं, किंतु उनका जीवन पापाचार की गंदगी से अत्यंत मलिन रहता है, वे उज्जवल वातावरण से तनिक भी लाभ नहीं उठाते हैं, क्योंकि उन्हें संसार में सुदीर्घ काल तक परिभ्रमण करना है, किन्तु जिनका संसार निकट हो जाता है, जो अंतःकरण पूर्वक मोक्ष के लिये प्रयत्न करते हैं उनको कितना लाभ होता है, यह लिखने की नहीं, अनुभव की वस्तु है। ___ “सागरधर्मामृत' में लिखा है कि गृहस्थ को तीर्थयात्रादि अवश्य करना चाहिये, क्योंकि इससे दर्शन की विशुद्धता होती है। इस दृष्टि से तीर्थयात्रा मुनि जीवन के लिए अत्यन्त उपयोगी है, तथा गृहस्थ के लिए भी हितकारी है। निर्वाण भूमि निर्वाण प्राप्त करने की पिपासा को जगाया करती है। वहां जाकर विचारक आत्मा हृदय से यही कहेगा :
खुद को खुद ही में ढूंढ, खुद को तू दे निकाल।
फिर तू ही खुद कहेगा, खुदा हो गया हूँ मैं ।। शिखरजी विहार की विज्ञप्ति
संपूर्ण बातों को विचार कर ही शांतिसागर महाराज ने शिखरजी की ओर संघ के साथ विहार की स्वीकृति दी थी। यह हर्षप्रद समाचार कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा वीर संवत्
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