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चारित्रचक्रवर्ती
पूत के पाँव पालने में....... मैने पूछा, “स्वामिन् संसार के उद्धार करने वाले महापुरुष व माता के मर्म में आते हैं, तब कुछ शुभ- शगुन कुटम्बियों आदि को दिखते हैं। माता को भी मंगल स्वपआदिका दर्शन होता है। आचार्य महाराबसदृशरलायधारकों कीचूडामणि रूप महान विभूति का जन्म कोई साधारण घटना नहीं है। कुछ ना कुछ अपूर्व बात अवश्य हुई होगी?" महापुराण में कहा है कि जब भरतेश्वर माता यशस्वती के गर्भ में आए थे, तब उस माता की इच्छा तलवाररूप दर्पण में मुख की शोभा देखने की होती थी। ___ उन्होंने कुछ काल तक चुप रहकर पश्चात् बताया, "उनके गर्भ में आने पर माता को दोहला हुआथा कि एक सहस्र दल वाले एकसौ आठ कमलों से जिनेन्द्र भगवान की पूजा करूं। इस समय पता लगाया गया की कहाँ ऐसे कमल मिलेंगे!कोल्हापुर के समीप के तालाब से वे कमल विशेष प्रबंध तथा व्यय द्वारा लाये गये और भगवान की बड़ी भक्तिपूर्वक पूजा की गई थी। उन्होंने कहा-“उस समय मेरी अवस्था लगभग १० वर्ष थी।"-पृष्ठ २५, लोक स्मृति, शुभ दोहला.
__ महाराज के गुरुदेव की अपार तपस्या आचार्य महाराज के दीक्षागुरु श्री १०८ देवेन्द्रकीर्ति स्वामी के विषय में पावसागर जी ने एक महत्व की बात सुनाई थी, जिससे इसके गुरुदेव की अद्भुत तपश्चर्या पर प्रकाश पड़ता है। उन्होंने कहा था, “एक दिन की बात है कि देवेन्द्र कीर्ति स्वामी गोकाक नगर से कोनूर आ रहे थे। रास्ते में सूर्य अस्त हो गया। दिगंबर मुनिरात्रि में विचरण नहीं करते, इसलिये मार्ग में ही रह गए। उनके साथ एगप्पपंडित भी था। उन्होंने अपने आसपास चारों ओर एक रेखा खींच ली और वे तथा साथ का पंडित उस वृत्त के भीतर हो गये।
सायंकालीनसामायिकहोने के उपरांत एकभीषणव्याघ्रवहाँ आयावरेखांकित क्षेत्र के बाहर उसने भीषण गर्बना-तर्जनाकी और अपना विकराल रौद्ररूप दिखाया, किन्तु उन निर्भीक ऋषिराज पर उसका कोई असर नहीं हुआ। कुछ समय के बाद वह व्याघ्र वहां से चला गया।
इसघटनाका समर्थन उक्त पंडित के नाती पंडित श्रीकांत ने भी किया था और कहा था कि मेरी माता भी यही बात बताती थी।"-पृष्ठ १०१, दिगम्बर दीक्षा.
१. देवेन्द्रकीर्तिजी १०५ वर्ष तकजीवित रहे। ये धारणा-पारणाअर्थात् एकउपवासतथाएक आहार करतेथे। उनके अन्त तकदाँत नहीं टूटे थे। उन्होंने १६ वर्ष की अवस्था में मुनिपद धारण कियाथा।वेबाल ब्रह्मचारीथे।
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