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दिगम्बर दीक्षा
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सर्पराज शांति के सागर को देखता था और शांति के सागर उस यमराज के दूत को अपनी अहिंसा पूर्ण दृष्टि से देखते थे। यह अमृत और विष की भेंट थी । अद्भुत दृश्य था वह ।
मैंने पूछा, “महाराज ! उस समय आप क्या सोचते थे ?"
महाराज ने कहा, “हमने यही सोचा था कि, यदि हमने इस जीव का बिगाड़ कुछ पूर्व में किया होगा, तो यह हमें बाधा पहुँचावेगा, नहीं तो यह सर्प चुपचाप चला जाएगा।'
महाराज का विचार यथार्थ निकला। कुछ काल के बाद सर्पराज महाराज को साम्य और धैर्य की मूर्ति तथा शांति का सिंधु देखकर अपना फन नीचा कर, मानो महामुनि के चरणों को प्रणाम करता हुआ, धीरे धीरे गुफा के बाहर जाकर न जाने कहाँ चला गया।
समुद्र के भीतर रत्नों की ऐसी राशि पड़ी रहती है, जिसकी दीप्ती के समान समस्त विश्व में भी कोई रत्न न हो, किन्तु उन रत्नों का लाभ समुद्र के तल का स्पर्श कर डुबकी लेने वालों को क्वचित् कदाचित् हो जाता है। ऐसी ही स्थिति शांतिसागरजी महाराज की प्रतीत होती है।
मैंने कहा, "महाराज ऐसा भीषण उपसर्ग और भी तो आया होगा ?"
मेरे प्रश्न के उत्तर में सौभाग्य की बात है कि शान्ति के रत्नाकर ने प्रसन्नता से एक रत्न और बाहर ला दिया।
असंख्य चींटियों द्वारा उपसर्ग
महाराज बोले, “एक बार हम जंगल के मंदिर के भीतर एकांत स्थान में ध्यान करने बैठे वहाँ पुजारी दीपक जलाने आया दीपक में तेल डालते समय कुछ तेल भूमि पर बह गया। वर्षा की ऋतु थी। दीपक जलाने के बाद पुजारी अपने स्थान पर वापस आ गया था। उस समय हम निद्राविजय तप का पालन करते थे। इससे उस रात्रि को जागृत रहकर हमने ध्यान में काल व्यतीत करने का नियम कर लिया था। पुजारी के जाने के कुछ काल पश्चात् चींटियों ने आना आरंभ कर दिया। धीरे- धीरे असंख्य चींटियों का समुदाय इकट्ठा हो गया और वे हमारे शरीर पर आकर फिरने लगी। कुछ काल के अनंतर उन्होंने हमारे शरीर के अधोभाग नितंब आदि को काटना प्रारंभ कर दिया। उन्होंने जब शरीर को खाना प्रारंभ किया, तो अधोभाग से खून बहने लगा। उस समय हम सिद्ध भगवान का ध्यान करते थे । रात्रि भर यही अवस्था रही। चींटियां नोंच-नोच कर खाती जाती थी । "
कभी एकाध चींटी शरीर में चिपक जाती है, तब उसके काटने से जो पीड़ा होती है, उससे सारी देह व्यथित हो जाती है । जब शरीर में असंख्य चींटियाँ चिपकी हों और देह
अत्यंत कोमल अंग गुप्तांग को सारी रात लगातर खाती रहें और नरदेहस्थित आत्माराम बिना प्रतिकार किये एक दो मिनट नहीं, घंटे दो घंटे नहीं, लगातार सारी रात इस दृश्य को
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