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संयम-पथ
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कर्मराशि भी विनष्ट होती जा रही थी। एक माह व्यतीत होने पर चातुर्मास के निश्चय करने का अवसर आया। उत्तूर ग्राम बहुत छोटा था। अत: गुरुदेव की आज्ञा से चरित्र नायक क्षुल्लक महाराज कार्गल आ गए। वहाँ एक भक्त श्रावक ने इनको कमंडलु भेंट दिया इससे इन्होंने लोटे को दूर कर दिया। प्रथम चातुर्मास कोगनोली में
पाटील श्री भीमगौड़ा के धार्मिक श्रीमंत घराने के भूषण श्री सातगौड़ा ने क्षुल्लक दीक्षा ली, इस शुभ समाचार ने सर्वत्र धार्मिक समाज को आनंदित किया। सभी लोग इस पुण्य निश्चय की सराहना करते हुए उनको धन्य-धन्य कह उठे । इनकी निस्पृहवृत्ति, सच्ची विरक्ति तथा रत्नत्रय धर्म की निष्कलंक साधना देखकर ऐसा कौन है, जो प्रभावित न होता हो, प्रणामांजलि अर्पित न करता हो ? इनके कार्गल पहुँचते ही कोगनोली ग्राम के श्रावकों के समुदाय ने आकर अनुनय विनय की और कोगनोली में वर्षायोग व्यतीत करने का सादर अनुरोध किया। कोगनोली की जनता का बड़ा पुण्य था, जो नवीन क्षुल्लक महाराज ने वहाँ प्रथम चातुर्मास व्यतीत करने की स्वीकृति प्रदान कर दी।
सच्चा रत्न छोटा होते हुए भी, अपनी असाधारण दीप्ति द्वारा घोर अंधकार को दूर करता है, उसी प्रकार क्षुल्लक होते हुए भी इन्होंने सम्यश्रद्धा तथा सम्यक्चारित्र का महान् प्रसार कार्य प्रारंभ कर दिया और इनके प्रचार का जादू जैसा असर देखा जाता था। गृहीत मिथात्व त्याग का महान प्रचार
इन्होंने देखा कि लोगों में कुदेवों (अन्यमतियों के रागी द्वेषी मिथ्यादेवों)की भक्ति विद्यमान है। लोग जिनेन्द्र देव को भूलकर चतुर्गति रूपी संसार में डुबाने वालों की आराधना में संलग्न हैं। इससे इनके अंत:करण में समाज की मिथ्यात्व रोग के दूर करने की भावना उत्पन्न हुई। कुल परम्परा से आगत प्रवृत्तियों, रूढ़ि को बदलना नदी की धारा का मुँह फेरने सदृश कठिन काम होता है, कारण जो काम पहले से पीढ़ियों से पीछे लग जाते हैं, वे असत्य होते हुए भी, दूर नहीं होते । मनोविज्ञान शास्त्र में इसे अत्यंत स्थितिपालक (Most Conservative Agent) कहा गया है। आदत वश आदमी यही सोचता है कि वह ठीक कार्य होगा, कारण मैं इसे बचपन से करता आ रहा हूँ। पुरातन संस्कार वश दोष को देखने की दृष्टि क्षीणप्राय हो जाती है।
महाराज का असाधारण व्यक्तित्व था, अत: उनके समक्ष जो भी कुदेव सेवी आता, वह तत्काल मिथ्यात्व का परित्याग कर व्यवहार सम्यक्त्व को धारण करता था। हजारों घरों में इन्होंने जिनेन्द्र भक्ति की ज्योति जगा दी। इनके मुख से शब्द निकलते ही भक्त मिथ्यात्व के त्याग का नियम ग्रहण कर लिया करते थे। संसार में सबसे बड़ा आत्म-शत्रु
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