________________
दिगम्बर दीक्षा सिद्धप्पा स्वामी
कोल्हापुर जिले में एक सिद्धप्पा स्वामी नाम के दि. जैन मुनि हो गए हैं। एक बार वे ग्राम के बाहर गुफा में ध्यान कर रहे थे। कुछ बदमाश लड़कों ने पत्थर मार कर उनके शरीर को लहू-लुहान कर दिया। वे शान्त रहे आये। प्रभात में पाटील ने उन दुष्ट लड़कों को पकड़ा। उस समय सिद्धप्पा स्वामी ने पाटील से लड़कों को छोड़ने को कहा और कहा ये बालक हमें वृक्ष समझते हैं, पत्थर मारने से इनको पीड़ा हुई और इन्हें कुछ नहीं लाभ हुआ। इनको एक-एक टोपी और कुरता दो। साधु के आदेशानुसार ऐसा करना पड़ा था। इस जगत में वे अद्भुत शान्त साधु हुए हैं। समता एवं सजग वैराग्य
पायसागर महाराज ने कहा, जब हजारों व्यक्ति भव्य स्वागत द्वारा गुरुदेव के प्रति जयघोष के पूर्व अपनी अपार भक्ति प्रकट करते थे और जब कभी कठिन परिस्थिति आती थी, तब वे एक ही बात कहते थे, “पायसागर ! यह जय-जयकार क्षणिक है, विपत्ति भी क्षणस्थायी है। दोनों विनाशीक हैं, अत: सभी त्यागियों को ऐसे अवसर पर अपने परिणामों में हर्ष-विषाद नहीं करना चाहिये।"
मैंने देखा है कि जिनबिम्ब, जिनागम तथा धर्मायतनों की हानि होने पर उनके धर्ममय अंत:करण को आघात पहुँचता था, किन्तु वे वैराग्यभावना के द्वारा अपनी शांति को सदा अक्षुण्ण रखते थे। संसार-सिंधु में डूबते हुए को बचाया ___ अपने कथन का उपसंहार करते हुए विद्वान् तपस्वी मुनि श्री पायसागरजी ने कहा, “मुझ जैसे व्यसनी, उच्छृखल आचरण वाले, भ्रष्टप्रवृत्ति तथा हीन-विचार वाली गुंडा वृत्ति से परिपूर्ण पतित आत्मा का यदि आचार्य शांतिसागर महाराज ने उद्धार न किया होता तो न जाने मेरी क्या दुर्गति होती। इस महान् पुरुष ने मुझे संसार-सिंधु में डूबते हुए देख हस्तावलंबन देकर मेरी रक्षा की है तथा मुझे महाव्रत की अपूर्व निधि दी। उनके उपकार को में भावान्तर में भी नहीं भूल सकता हूँ। उनकी पावन स्मृति मुझे निरंतर प्रकाश प्रदान करती है। हमें गुरुदेव का बहुधा स्वप्न में दर्शन होता है। वे चारित्र चक्रवर्ती आचार्य शिरोमणि श्री शांतिसागर महाराज मेरी जीवन-नौका के लिये प्रकाशस्तंभ रूप हैं।" मूक व्यक्ति को वाणी मिली
भोजग्राम से वापिस लौटने पर स्तवनिधि क्षेत्र में पुन: १०८ पूज्य पायसागर महाराज के सन् १९५२ में दर्शन हुए। उस समय उन्होंने कहा, “आपको एक महत्व की बात और बताना है।"
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org