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दिगम्बर दीक्षा मकोड़े का उपसर्ग
उन्होंने कहा, “कोन्नूर के जंगल में महाराज बाहर बैठकर धूप में सामायिक कर रहे थे। इतने में एक बड़ा कीड़ा-मकोड़ा उनके पास आया और उनके पुरुष चिह्न से चिपटकर वहाँ का रक्त चूसना प्रारंभ कर दिया। रक्त बहता जाता था, किन्तु महाराज डेढ़ घंटे पर्यंत अविचलित ध्यान करते रहे।"
नेमिसागरजी ने बताया कि उस समय वे गृहस्थ थे और चिंतित थे कि इस समय क्या किया जाय। यदि कीड़े को पकड़कर अलग करते, तो महाराज के ध्यान में विघ्न आयेगा। अतः वे किंकर्तव्यविमूढ़ हो रहे थे। नेमिसागरजी ने यह भी कहा कि और भी छोटे-छोटे मकोड़े उस समय आते थे, उनको तो हम अलग कर देते थे, किन्तु बड़े मकोड़े की बाधा को हम दूर नहीं कर सके। पुरुष चिह्न से रक्त बहता था, किन्तु महाराज अपने अखण्ड ध्यान में पूर्ण निमग्न थे। शेड़वाल में सर्पबाधा
नेमिसागर महाराज ने सर्पसंबंधी एक घटना और बताई थी। उस समय शांतिसागर महाराज शेड़वाल में थे। वे पाटे पर बैठे थे। पाटे के नीचे पाँच फुट लंबा सर्प बैठा था। वह सर्प उस स्थान पर रातभर बैठा रहा। दिन निकलने पर उस जगह को झाड़ने वाले जैनी से महाराज ने कहा, “भीतर संभलकर जाना।" जब वह भाई भीतर गया, तो उसकी दृष्टि सर्पराज पर पड़ी। उसने बाहर आकर दूसरे लोगों से सर्प की चर्चा बताई। कोगनोली में सर्पकृत उपद्रव
महाराज कोगनोली में जब क्षुल्लक की अवस्था में आये थे, तब भी वहाँ सर्पकृत उपसर्ग हुआ था। वहाँ के प्राचीन मंदिर में महाराज ध्यान के हेतु बैठे थे। ध्यान आरंभ करने के पूर्व कुछ जिन नाम स्मरण पाठ कर रहे थे कि विशाल विषधर वहाँ घुसा। कुछ समय मंदिर में यहाँ-वहाँ घूमकर वह इनके शरीर से लिपट गयामानो वे उसके बड़े प्रेमीमित्र ही हों। बात यह है कि जब महाराज सामायिक पाठ पढ़ते हैं, तब कहते हैं कि मेरा सर्व जीवों में समता भाव है, समता सर्व भूतेषु, मेरा किसी के भी साथ बैरभाव नहीं है, वैर मझं ण केणवि, मेरा सर्व जीवों के प्रति मैत्री भाव है, मित्ती मे सव्वभूदेसु।
मालूम होता है कि सर्पराज इनके पास इसीलिये आया था कि इनके वचन सत्य है या नहीं, इसे देखें ? ये समताभाव रखते हैं या नहीं ? ये मेरे प्रति मैत्री रखते हैं या नहीं ?
सर्प ने वाणी के अनुरूप इनकी प्रवृत्ति पाई तो वह प्रेम के साथ शरीर से लिपट गया, मानों इनके प्रति वह स्नेह व्यक्त कर रहा हो। महाराज वसुधैव कुटुम्बकम् के सिद्धांत को स्वीकार कर चुके थे, इससे ही वह सर्पराज आत्मीयभाव से कमर से चढ़कर गले में
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