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चारित्र चक्रवर्ती
पश्चात्
ऐनापुर के पाटील ने श्री सम्मेद शिखरजी की महापूजा बड़ी प्रभावना पूर्वक सम्पन्न कराई थी। उस समय उसमें हजारों लोग आये थे । अनेक मुनिराज व त्यागी - व्रती पुरुष भी पधारे थे । यहाँ से कोगनोली होते हुए महाराज ग्रीष्म में समडोली पधारे, 1 हिंगणगांव के पंचकल्याणक महोत्सव में सम्मिलित हुए। अनंतर कुंभोज, उदयगांव आदि की ओर विहार करते हुए चातुर्मास के समय ऐनापुर पधारे, वहाँ खूब प्रभावना हुई थी । कोन्नूर में चतुर्थ चातुर्मास
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निर्ग्रन्थ रूप में चतुर्थ चातुर्मास का सौभाग्य कोन्नूर को प्राप्त हुआ था । यह बेलगांव जिले में गोकाक के पास है। यहाँ के प्राचीन मंदिर के मानस्तंभ में एक बड़ा महत्व का कन्नड़ी में शिलालेख है। इसमें लिखा है कि एक राजा ने कुछ ग्राम इसलिये दान किये थे कि उनकी आमदनी के द्वारा यहाँ की पुण्य भूमि में निवास करने वाले निर्ग्रन्थों को उष्ण जल की व्यवस्था रहे तथा उनकी बराबर परिचर्या होती जावे। इस ग्राम के पास की पहाड़ी में सात सौ गुफाएँ थीं, ऐसी प्रसिद्धि है। इससे यह ज्ञात होता है कि जब जैन धर्म के पालक करोड़ों थे, तब महाव्रत के भाव वाली अनेक आत्माएँ संयम साधना करती थीं और उनका बहुत बड़ा समुदाय इस कोन्नूर की भूमि को पवित्र करता आया था। इस चातुर्मास में दूर-दूर
श्रावकों ने महाराज के दर्शन करके अपने मनुष्य जन्म को सफल माना और शांतिलाभ लिया था । यह विक्रम संवत् १६८० सन् १६२३ का चातुर्मास विशेष प्रभावना पूर्ण रहा । गुफा में ध्यान और सर्प के उपद्रव में स्थिरता
महाराज के पास दूर-दूर के प्रमुख धर्मात्मा श्रावक धर्म लाभ के लिये आते थे। धार्मिकों के आगमन से इस धर्मात्मा को परितोष न होगा, किन्तु अपनी कीर्ति के विस्तार से महाराज की पवित्र आत्मा को तनिक भी हर्ष नहीं हुआ था। वे बाल्य जीवन से ही ध्यान और अध्ययन के अनुरागी रहे थे । अब प्रसिद्धिवश बहुत लोगों के आते रहने से ध्यान करने में बाधा सहज ही आ जाती थी। इससे महाराज ने पहाड़ी की एक अपरिचित गुफा में जाकर आनंद से ध्यान करने का विचार किया और वे एक प्रशांत गुफा में मध्याह्न की सामायिक के लिये गए और वहाँ सामायिक करने लगे। गुफा के पास में झाड़ी थी और उसमें सर्पादिक जीवों का भी निवास था ।
गुरु भक्त मंडली ने देखा कि आज महाराज ध्यान के लिये दूसरे स्थान पर गये हैं । अब उन्होंने उनको ढूंढना प्रारंभ किया और कुछ समय के पश्चात् वे उस गुफा के समीप आ गये, जिसमें महाराज सामायिक में तल्लीन थे। उस समय एक सर्प झाड़ी में से निकला और गुफा के भीतर जाते हुए लोगों के दृष्टि गोचर हुआ। कुछ समय पश्चात् वह भीतर फिरकर बाहर निकलना ही चाहता था कि एक श्रावक ने गुफा के द्वार पर एक नारियल चढ़ा दिया। उसकी आहट से पुनः सर्प भीतर घुस गया। वहाँ वह महाराज के पास गया
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